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केस स्टडी विधि के उद्देश्य, विशेषताएं और इस विधि की उपयोगितायेँ

  •  विद्यार्थी स्वतंत्र होकर, स्वयं ही सृजनात्मक ढंग से समस्या पर विचार कर सकेंगें।
  •  वे समस्या समाधान ( Problem based learning )तक पहुंचने में सक्रिय हो  सकेंगें।
  •  वे अपने पूर्व ज्ञान का प्रयोग करते हुए प्रमाणों को संग्रह कर सकेंगें।
  •  घटनाक्रम में नवीन तथ्यों को जान सकेंगे।
  •  स्वयं अपने अनुभव से सीखते हुए ज्ञान प्राप्त कर सकेंगें।
  •  व्यक्तिगत, सामाजिक संबंधों को उत्तम ढंग से स्थापित कर सकेंगे।
  •  छात्रों में अभिप्रेरण एवं अभिव्यक्ति की क्षमता में वृद्धि हो सकेगी।
  •  छात्रों की उपलब्धियों का मूल्यांकन हो सकेगा।

case history method in hindi

व्यक्तिगत अध्ययन छात्रों को एक सार्थक ज्ञान प्रदान करता है जिसका प्रयोग विभिन्न प्रकार के समाधान या अध्ययन के लिए किया जाता है। यह एक जटिल अधिगम का स्वरूप होता है। इसमें  सृजनात्मक चिन्तन निहित होता है और चिन्तन स्तर पर शिक्षण की व्यवस्था होती है।

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Case of study child ka farmet kaise taiyar krein

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Case Study in Hindi Explained – केस स्टडी क्या है और कैसे करें

Tomy Jackson

आपने अक्सर अपने स्कूल या कॉलेज में केस स्टडी के बारे में सुना होगा । खासकर कि Business Studies और Law की पढ़ाई पढ़ रहे छात्रों को कैसे स्टडी करने के लिए कहा जाता है । पर case study kya hai ? इसे कैसे करते हैं , इसके फायदे क्या हैं ? इस आर्टिकल में आप इन सभी प्रश्नों के बारे में विस्तार से जानेंगे ।

Case study in Hindi explained के इस पोस्ट में आप न सिर्फ केस स्टडी के बारे में विस्तार से जानेंगे बल्कि इसके उदाहरणों और प्रकार को भी आप विस्तार से समझेंगे । यह जरूरी है कि आप इसके बारे में सही और विस्तृत जानकारी प्राप्त करें ताकि आपको कभी कोई समस्या न हो । तो चलिए विस्तार से इसके बारे में जानते हैं :

Case Study in Hindi

Case Study एक व्यक्ति , समूह या घटना का गहन अध्ययन है । एक केस स्टडी में , किसी भी घटना या व्यक्ति का सूक्ष्म अध्ययन करके उसके व्यवहार के बारे में पता लगाया जाता है । एजुकेशन , बिजनेस , कानून , मेडिकल इत्यादि क्षेत्रों में केस स्टडी की जाती है ।

case study सिर्फ और सिर्फ एक व्यक्ति , घटना या समूह को केंद्र में रखकर किया जाता है और यह उचित भी है । इसकी मदद से आप सभी के लिए एक ही निष्कर्ष नहीं निकाल सकते । उदहारण के तौर पर , एक बिजनेस जो लगातार घाटा झेल रहा है उसकी केस स्टडी की जा सकती है । इसमें सभी तथ्यों को मिलाकर , परखकर यह जानने की कोशिश होती है कि क्यों बिजनेस लगातार loss में जा रही है ।

परंतु , जरूरी नहीं कि जिस वजह से यह पार्टिकुलर कम्पनी घाटा झेल रही हो , अन्य कंपनियों के घाटे में जाने की यही वजह हो । इसलिए कहा जाता है कि किसी एक मामले के अध्ययन से निकले निष्कर्ष को किसी अन्य मामले पर थोपा नहीं जा सकता । इस तरह आप case study meaning in Hindi समझ गए होंगे ।

Case Study examples in Hindi

अब जबकि आपने case study kya hai के बारे में जान लिया है तो चलिए इसके कुछ उदाहरणों को भी देख लेते हैं । इससे आपको केस स्टडी के बारे में जानने में अधिक मदद मिलेगी ।

ऊपर के उदाहरण को देख कर आप समझ सकते हैं कि case study क्या होती है । अब आप ऊपर दिए case पर अच्छे से study करेंगे तो यह केस स्टडी कहलाएगी यानि किसी मामले का अध्ययन । पर केस स्टडी कैसे करें ? अगर हमारे पास ऊपर दिए उदाहरण का केस स्टडी करने को दिया जाए तो यह कैसे करना होगा ? चलिए जानते हैं :

Case Study कैसे करें ?

अब यह जानना जरूरी है कि एक case study आखिर करते कैसे हैं और किन tools का उपयोग किया जाता है । तो एक केस स्टडी करने के लिए आपको ये steps फॉलो करना चाहिए :

Infographic on case study in Hindi

1. सबसे पहले केस को अच्छे से समझें

अगर आप किसी भी केस पर स्टडी करना चाहते हैं तो आपको सबसे पहले उसकी बारीकियों और हर एक डिटेल पर ध्यान देना चाहिए । तभी आप आगे बढ़ पाएंगे और सही निर्णय भी ले पाएंगे । Case को अच्छे से समझने का सबसे बड़ा फायदा यह है कि इसपर स्टडी करते समय आपको ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ती । केस को अच्छे से समझने के लिए आप यह कर सकते हैं :

  • Important points को हाईलाइट करें
  • जरूरी समस्याओं को अंडरलाइन करें
  • जरूरी और बारीकियों का नोट्स तैयार करें

2. अपने विश्लेषण पर ध्यान दें

Case Study करने के लिए जरूरी है कि आप अपने analysis पर ध्यान दें ताकि बढ़िया रिजल्ट मिल सके । इसके लिए आप विषय के 2 से 5 मुख्य बिंदुओं / समस्याओं को उठाएं और बारीकी से उनके बारे में जानकारी इकट्ठा करें । इसके बारे में पता करें कि ये क्यों exist करती है और संस्था पर इनका क्या प्रभाव है ।

आप उन समस्याओं के लिए जिम्मेदार कारकों पर भी नजर डालें और सभी चीजों को ढंग से समझने की कोशिश करें तभी जाकर आप सही मायने में case study कर पाएंगे ।

3. संभव समाधानों के बारे में सोचें

किसी भी केस स्टडी का तीसरा महत्वपूर्ण पड़ाव है कि आप समस्या के संभावित समाधानों के बारे में सोचें ।इसके लिए आप discussions , research और अपने अनुभव की मदद ले सकते हैं । ध्यान रहें कि सभी समाधान संभव हों ताकि उन्हें लागू किया जा सके ।

4. बेहतरीन समाधान का चुनाव करें

केस स्टडी का अंतिम पड़ाव मौजूदा समाधानों में से एक सबसे बेहतरीन समाधान का चुनाव करना है । आप सभी समाधानों को एक साथ तो बिल्कुल भी implement नहीं कर सकते इसलिए जरूरी है कि बेहतरीन को चुनें ।

Case Study format

case history method in hindi

अगर आप YouTube video की मदद से देखकर सीखना चाहते हैं कि Case Study कैसे बनाएं तो नीचे दिए गए Ujjwal Patni की वीडियो देख सकते हैं ।

इस पोस्ट में आपने विस्तार से case study meaning in Hindi के बारे में जाना । अगर कोई प्वाइंट छूट गया हो तो कॉमेंट में जरूर बताएं और साथ ही पोस्ट से जुड़ी राय या सुझाव भी आप कॉमेंट में दे सकते हैं । पोस्ट पसंद आया हो और हेल्पफुल साबित हुई हो तो शेयर जरूर करें ।

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I have always had a passion for writing and hence I ventured into blogging. In addition to writing, I enjoy reading and watching movies. I am inactive on social media so if you like the content then share it as much as possible .

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Case Study: Meaning, Sources and Limitations | Hindi | Psychology

case history method in hindi

Read this article in Hindi to learn about:- 1. Meaning of Case Study 2. Characteristics of Case Study 3. Sources of Information 4. Merits 5. Limitations.

  • व्यक्तिगत अध्ययन पद्धति का अर्थ (Meaning of Case Study)
  • वैयक्तिक अध्ययन पद्धति की विशेषताएँ (Characteristics of Case Study)
  • वैयक्तिक अध्ययन पद्धति में सूचनाओं के स्रोत (Sources of Information in Case Study)
  • वैयक्तिक अध्ययन पद्धति के गुण (Merits of Case Study)
  • व्यक्तिगत अध्ययन पद्धति की सीमाएं (Limitations of Case Study)

1. व्यक्तिगत अध्ययन पद्धति का अर्थ (Meaning of Case Study):

ADVERTISEMENTS:

मनोवैज्ञानिक क्षेत्रों में जो भी अध्ययन किये जाते हैं, उन्हें प्रमुख रूप से दो वर्गों में वर्गीकृत किया जा सकता है- गणनात्मक अध्ययन तथा गुणात्मक अध्ययन । गणनात्मक अध्ययन वे होते हैं, जो गणना या सांख्यिकी पर आधारित होते हैं । इसके विपरीत गुणात्मक अध्ययन वे होते हैं, जो गुणदोषों पर आधारित होते हैं ।

व्यक्तिगत अध्ययन पद्धति गुणात्मक अध्ययन पद्धति है, जिसमें अध्ययन इकाई का अध्ययन उसमें पाये जाने वाले गुणदोषों के आधार पर किया जाता है । व्यक्तिगत अध्ययन पद्धति में एक समय में केवल किसी एक इकाई को ही अध्ययन के लिए चुन लिया जाता है ।

फिर इस एक का ही सम्पूर्ण अध्ययन किया जाता है । दूसरे शब्दों में अध्ययन के लिए चुनी गई इकाई के जितने भी सम्भावित पक्ष होते हैं, उन सभी पक्षों का गहनता और सूक्ष्मता के साथ अध्ययन किया जाता है । इसीलिए बर्गेस ने व्यक्तिगत अध्ययन पद्धति को ‘सामाजिक सूक्ष्म दर्शक यन्त्र’ कहकर सम्बोधित किया है ।

व्यक्तिगत अध्ययन पद्धति का प्रयोग अनेक विद्वानों ने अपने अध्ययनों में किया है, जैसे-लीप्ले, हरबर्ट, स्पेन्सर, विलियम हीली, रेडफील्ड, ऑस्कर लेविस इत्यादि ।

मनोवैज्ञानिक एवं समाजशास्त्रीय अध्ययनों में व्यक्तिगत अध्ययन पद्धति का सर्वप्रथम प्रयोग लीप्ले ने किया था । इसके पश्चात् हरबर्ट स्पेन्सर हीली रैडफील्ड तथा लेविस इत्यादि विद्वानों ने इस पद्धति का प्रयोग विभिन्न प्रकार के अध्ययनों में किया ।

व्यक्तिगत अध्ययन पद्धति जैसा कि इसके नाम से ही स्पष्ट है, इसमें एक समय में किसी एक इकाई को चुनकर उसका गहनता तथा सूक्ष्मता के साथ अध्ययन किया जाता है । अध्ययन की इकाई कोई व्यक्ति, संस्था, अथवा समूह कुछ भी हो सकता है ।

दूसरे शब्दों में यह कह सकते हैं, कि वैयक्तिक अध्ययन पद्धति अपने आप में किसी इकाई का गहन और सूक्ष्मदर्शी अध्ययन है । पी.वी.यंग के अनुसार, ”वैयक्तिक अध्ययन किसी सामाजिक इकाई-चाहे वह एक व्यक्ति परिवार संस्था सांस्कृतिक वर्ग अथवा समस्त जाति हो – के जीवन के अनुसन्धान व उसकी विवेचना करने की पद्धति को कहते हैं ।”

बीसेप्न एवं बीसेप्न के शब्दों में, ”वैयक्तिक अध्ययन एक गुणात्मक विवेचना का रूप है, जिसमें व्यक्ति परिस्थिति अथवा संस्था का अत्यन्त सावधानी सहित पूर्ण निरीक्षण किया जाता है ।” गिडिंग्स के शब्दों में, “अध्ययन किया जाने वाला वैयक्तिक विषय केवल एक व्यक्ति अथवा उसके जीवन की एक घटना या विचारपूर्ण दृष्टि से एक राष्ट्र का इतिहास का एक युग भी हो सकता है ।”

उपरोक्त परिभाषाओं के आधार पर यह कहा जा सकता है, कि वैयक्तिक अध्ययन पद्धति वह पद्धति है, जिसमें एक समय में केवल किसी एक सामाजिक इकाई का सम्पूर्ण रूप में गहनता तथा सूक्ष्मता के साथ अध्ययन किया जाता है ।

2. वैयक्तिक अध्ययन पद्धति की विशेषताएँ ( Characteristics of Case Study):

वैयक्तिक अध्ययन पद्धति की प्रमुख निम्नलिखित विशेषताओं का उल्लेख किया जा सकता है:

(1) गुणात्मक अध्ययन न कि संख्यात्मक:

जैसा कि परिभाषाओं से स्पष्ट है, कि इस पद्धति के द्वारा सामाजिक घटना का गुणात्मक अध्ययन किया जाता है, न कि परिमाणात्मक या संख्यात्मक । निष्कर्षो का आधार संख्याएं नहीं होतीं, बल्कि सामाजिक घटना का गहन अवलोकन इस पद्धति के अध्ययन की इकाई का वर्णात्मक रूप में जीवन इतिहास प्रस्तुत किया जाता है, जिसमें अतीत की दशाओं का वर्तमान से सम्बद्ध किया जाता है ।

इस प्रकार वैयक्तिक अध्ययन पद्धति गहन अवलोकन के आधार पर घटना का प्राकृतिक इतिहास प्रस्तुत करती है ।

( 2) समस्या का गहन अध्ययन:

इस पद्धति की महत्वपूर्ण विशेषता यह है, कि यह अध्ययन की इकाई के बारे में सब कुछ जानने का प्रयास करती है, न कि उसके किसी पक्ष या सामाजिक सर्वेक्षण की भांति दूर से किया गया ऊपरी अध्ययन ।

इसलिए वैयक्तिक पद्धति दीर्घकालीन अध्ययन होते हैं । इसलिए बर्गेस ने इसे सामाजिक सूक्ष्म अध्ययन कहा है । अध्ययनकर्त्ता सामाजिक घटना में अपने अवलोकन के द्वारा अन्दर तक प्रविष्ट होने की चेष्टा करता है ।

(3) वैयक्तिक अध्ययन:

वैयक्तिक अध्ययन बहुत अधिक प्रणालीबद्ध नहीं होते, बल्कि अनुसम्यगनकर्त्ता अपने वैयक्तिक, अनुसन्धान के प्रति उसकी सूझ-बूझ से प्रभावित होते हैं । अत: यह अध्ययन व्यक्तिगत होते हैं । इस प्रकार के अध्ययन अधिकांशत: एकाकी अध्ययनकर्त्ता के द्वारा किये जाते हैं ।

(4) सामूहिक अध्ययन:

वैयक्तिक अध्ययन इकाई की सम्पूर्णता का अध्ययन है । इसकी सर्वाधिक उल्लेखनीय विशेषता अध्ययन की इकाई की समग्रता को बनाये रखते हुए उसका सम्पूर्ण अध्ययन करना है ।

3. वैयक्तिक अध्ययन पद्धति में सूचनाओं के स्रोत ( Sources of Information in Case Study):

यह पद्धति अपने आप में बड़ी अनोखी पद्धति है । इसमें सूचना एकत्रित करने के निम्नलिखित स्रोत हैं:

( 1) प्राथमिक सामग्री:

अध्ययनकर्त्ता द्वारा अध्ययन क्षेत्र में जाकर साक्षात्कार निरीक्षण तथा अनुसूची के माध्यम से सामग्री एकत्रित करना ।

(2) द्वितीयक सामग्री:

इसके अन्तर्गत लिखित तथा प्रकाशित सामग्री आती है इसके निम्नलिखित स्रोत है:

(iii) डायरियाँ,

(iv) संस्मरण,

(v) आत्मकथाएँ,

(vii) फोटो एलबम,

(viii) केस को दिये गये प्रमाण-पत्र,

(ix) वंशावली, इनाम तथा

(x) केस से सम्बन्धित संस्थाओं की उनके विषय में रिपोर्ट तथा रिकॉर्ड इत्यादि ।

4. वैयक्तिक अध्ययन पद्धति के गुण ( Merits of Case Study):

यह कहना उचित ही होगा कि, ”वैयक्तिक जीवन अध्ययन पद्धति के विरोध में चाहे कुछ भी कहा गया हो पर यह सत्य है, कि सामाजिक वातावरण के अध्ययन में यह प्रणाली आधारभूत रहेगी ।”

वैयक्तिक अध्ययन पद्धति को आज किसी समस्या के सूक्ष्म अध्ययन के लिए अत्यन्त उपयोगी समझा जा रहा है, और किसी भी गहन सूक्ष्म अध्ययन के लिए यह प्रणाली ही सर्वोत्तम है ।

इस बात को और स्पष्ट रूप में समझने के लिए हम व्यक्तिगत अध्ययन पद्धति का मह त्व/गुण निम्नलिखित रूप में प्रस्तुत कर सकते हैं:

(1) समस्या का सूक्ष्म व गहन अध्ययन:

व्यक्तिगत अध्ययन के अन्तर्गत व्यक्तिगत इकाइयों का अति गहन एवं सूक्ष्म अध्ययन किया जाता है । इस प्रणाली के अन्तर्गत इकाइयों के केवल विशिष्ट पहलुओं का अध्ययन नहीं वरन् वस्तुओं के सभी पहलुओं का हर दृष्टि से अध्ययन किया जाता है, और इस रूप में यह अति गहन अध्ययन होता है ।

(2) सामग्री की सम्पूर्णता:

वैयक्तिक अध्ययन पद्धति का महत्व इसलिए भी है, क्योंकि इसके द्वारा जो सामग्री एकत्रित की जाती है, वह अपने में सम्पूर्ण होती है । इतनी पर्याप्त मात्रा में सामग्री अन्य विधि से प्राप्त करना कठिन ही नहीं दुष्कर कार्य भी है ।

(3) महत्वपूर्ण परिकल्पनाओं का साधन:

व्यक्तिगत अध्ययन अनेक महत्वपूर्ण परिकल्पनाओं का निर्माण करने में एक साधन के रूप में कार्य करता है, इसमें अनेक इकाइयों का सूक्ष्म एवं विस्तृत अध्ययन किया जाता है और निष्कर्षों पर पहुँचा जाता है । इन्हीं निष्कर्षों के आधार पर अनेक परिकल्पनाओं का निर्माण सम्भव है, और किया भी जाता है ।

(4) अति महत्वपूर्ण प्रपत्रों का साधन:

व्यक्तिगत अध्ययन अनेक महत्वपूर्ण प्रपत्रों का निर्माण करने में हमारी सहायता करता है । यह महत्वपूर्ण प्रपत्र, अनुसूची, प्रश्नावली, साक्षात्कार निर्देशिका आदि हैं ।

किसी विशेष वर्ग की कुछ विशेष इकाइयों का अति सूक्ष्म अध्ययन करने के पश्चात् हमें अनेक महत्वपूर्ण बातों रुचियों मनोवृत्तियों आदि का पर्याप्त ज्ञान हो जाता है, और ऐसा होने पर अनेक महत्वपूर्ण प्रपत्रों का निर्माण करने में कोई विशेष कठिनाई नहीं होती ।

(5) इकाइयों का वर्गीकरण एवं विभाजन:

वैयक्तिक अध्ययन विभिन्न समूहों में विभाजित एवं वर्गीकृत करने में सहायता करता है । इकाइयों का चुनाव यदि सावधानी से किया जाये तो इसके बारे में लेखबद्ध सामग्री किसी इकाई की महत्वपूर्ण सामान्य एवं विशिष्ट अवस्थाओं की तुलना में एवं वर्गीकरण का आधार प्रदान कर सकती है ।

(6) व्यक्तिगत भावनाओं एवं मनोवृत्तियों का अध्ययन:

व्यक्तिगत अध्ययन के अन्तर्गत व्यक्तिगत भावनाओं एवं मनोवृत्तियों का गहन अध्ययन किया जाता है । एक व्यक्ति की किस-किस परिस्थिति में क्या-क्या भावनाएँ तथा किस प्रकार की मनोवृत्ति रहती है ? इस पद्धति से ही मालूम होता है ।

5. व्यक्तिगत अध्ययन पद्धति की सीमाएं ( Limitations of Case Study):

यद्यपि इसमें कोई भी सन्देह नहीं है, कि वैयक्तिक अध्ययन पद्धति का अत्यधिक महत्व है, फिर भी इस प्रणाली की कुछ सीमाएँ भी हैं ।

इन सीमाओं को अग्रलिखित रूप में प्रस्तुत किया जाता है:

( 1 ) केवल कुछ ही इकाइयों के आधार पर निष्कर्ष:

व्यक्तिगत अध्ययन की प्रथम सीमा यह है, कि इसके अन्तर्गत केवल कुछ थोड़ी-सी इकाइयों के अध्ययन के आधार पर ही निष्कर्ष निकाल लिये जाते हैं, और यदि उन विशेष परिस्थितियों को ध्यान में रखा जाये तथा निष्कर्षों को सामान्य रूप से सभी इकाइयों पर लागू किया जाये तो निश्चित ही धोखा खाने की सम्भावना रहती है ।

(2) अवैज्ञानिक विधि:

व्यक्तिगत अध्ययन अध्ययन पद्धति अवैज्ञानिक विधि ही नहीं वरन् असंगठित विधि भी है । वास्तव में इस प्रविधि में इकाइयों के चुनाव एवं सूरग्ना संकलन करने पर किसी भी प्रकार का नियन्त्रण नहीं रहता । साथ ही कोई निश्चित वैज्ञानिक एवं संगठित पद्धति का सहारा भी नहीं लिया जाता है । इस रूप में यह अवैज्ञानिक विधि भी है ।

(3) अधिक शुद्धता:

व्यकित अध्ययन में डायरी, पत्र, जीवन-इतिहास आदि से प्राप्त सामग्री का उपयोग होता है । लेकिन ये सब रिकॉर्ड एवं पत्र दोषपूर्ण होते हैं, जिन पर आधारित अध्ययन एवं निष्कर्षों का भी दोषपूर्ण एवं अशुद्ध होना स्वभाविक है ।

(4) दोषपूर्ण जीवन-इतिहास:

यह प्रणाली अपने अध्ययन में जीवन-इतिहास का प्रयोग करती है, परन्तु ये जीवन-इतिहास दोषपूर्ण एवं अवैज्ञानिक होते हैं ।

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Basic Versus Applied (बेसिक बनाम एप्लाइड)

  • Fundamental or Basic or Pure – New knowledge – why, what & how – advancement of theory – single discipline – in technical language
  • Applied – solve specific problem – solve immediate problem for betterment – in common language

Fixed Versus Flexible

  • Fixed Research – design is fixed, theory driven, measured quantitatively
  • Flexible Research – more freedom for data collection, qualitative

Quantitative vs. Qualitative (मात्रात्मक बनाम गुणात्मक)

  • Quantitative – Collection & analysis of data – from questionnaire, survey (assume world to be stable so can be measured) – deductive (logic) निगमनात्मक
  • Qualitative – Non-numeric – like observation, interview (since perspective of people differs) – narrative description and field focused – inductive (empirical) आगमनात्मक

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Experimental vs. Non-Experimental

  • Experimental - Cause effect relationship, control gp & experimental gp (can include pilot study) , manipulate IV, effect of changing IV on DV, starts with hypothesis, control of extraneous variable is important, Control experiment – physical, selective, statistical
  • Exploratory (खोजपूर्ण)
  • Descriptive (वर्णनात्मक)
  • Historical (ऐतिहासिक)

Exploratory vs. Confirmatory Research (खोजपूर्ण बनाम स्थायीकरण रिसर्च)

  • Exploratory – explore possibility of doing research where due to paucity of knowledge, hypothesis testing is difficult (e. g. , vendor may explore possible sales areas) – has higher level of uncertainty & ignorance of subject, easier to make new discoveries – less stringent – case study, ethnography, projective techniques
  • Exploratory research generates a posteriori hypotheses by examining a data-set and looking for potential relations between variables.
  • Confirmatory research tests a priori hypotheses - outcome predictions that are made before the measurement phase begins. Are usually derived from a theory or the results of previous studies.

Explanatory or Casual Research (स्पष्टीकरण या कारण शोध)

  • Explains cause effect relationship
  • Idea is to understand does a change in X cause a change in Y?
  • It can employ statistical method or experimental method
  • It is a conclusive research – determine relation between causal variable and effect predicted

Descriptive Research (वर्णनात्मक अनुसंधान)

  • Only why and what – not deals with “how” (what are benefits of multimedia textbooks as compared to print textbooks)
  • More structured than exploratory
  • Static – single phenomena – public opinion
  • Dynamic - cross sectional or longitudinal
  • Survey studies – assess characteristics of whole population
  • Interrelationship studies – relationship among data (case studies, casual comparative, correlational)
  • Developmental studies – changes as function of time (growth, trend, model development)

Historical Research (ऐतिहासिक अनुसंधान)

  • Examine past events
  • Qualitative
  • Primary source – relic, remain, artifacts
  • Secondary source – textbook, newspaper, periodicals
  • Criticism – external (genuineness of source) and internal (based on accuracy and competence of writer)

Ex-Post Facto or Casual - Comparative Research

  • Quasi-experimental – participants are not randomly assigned – 2 gp. with different IV and compare them on DV
  • IV (cause) prior to study affects DV (effect)
  • Studies what researcher cannot alter (can՚t make a person overweight for studying its effect on behavior)
  • Tsunami hit area

Correlational Research (सहसंबंधी अनुसंधान)

  • Degree of relationship b⟋w variables
  • It is quantitative
  • Range -1 to 0 to + 1

Evaluation Research (मूल्यांकन अनुसंधान)

  • Determines impact of social intervention (impact of program on certain social problem)
  • Scientific-experimental model – accuracy and objectivity
  • Management oriented - PERT (Program Evaluation and Review Technique) , and CPM (Critical Path Method)
  • Qualitative Anthropological model – importance of observation
  • Participant-oriented – client-centered and stakeholder approach

Formative vs. Summative Evaluation

  • Need assessment – who needs and how great the need is
  • Evaluative assessment – evaluation is feasible
  • Structured conceptualization
  • Implementation - transparency
  • Impact – broader than outcome (includes intended and unintended effects)
  • Cost-effectiveness
  • Secondary analysis – reexamine data to address new questions
  • Meta-analysis – integrate outcome from multiple studies

Diagnostic Research (नैदानिक अनुसंधान)

  • Find the cause
  • Emergence of problem ⇾ diagnosis and solution

Prognostic Research (पूर्वज्ञान संबंधी अनुसंधान)

  • Find relation b⟋w predictor and outcome
  • Find course of action
  • Early detection

Action Research (क्रिया शोध)

  • Solve immediate problem, carried by actors (main people)
  • Led by team – participatory or practical
  • Might include observation, interview, field note, survey or questionnaire
  • Individual – one person
  • Collaborative – 2 or more
  • School-wide – entire system

Types of Research Problems Addressed

  • Exploratory (खोजपूर्ण) questions -What is the case? , What are the key factors?
  • Descriptive (वर्णनात्मक) questions - How many? , What is the incidence of x? , Are x and y related?
  • Causal questions (कारण) - Why? , What are the causes of y?
  • Evaluative (मूल्यांकन) questions - What was the outcome of x? , Has P been successful?
  • Predictive (पूर्वानुमान) questions - What will the effect of x be on y?

Historical (ऐतिहासिक) questions - What led to y happening? , What were the events that led up to y? , What caused y?

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# ऐतिहासिक अनुसंधान पद्धति : अर्थ, परिभाषा, स्त्रोत, प्रमुख चरण, गुण एवं दोष (Historical Method in Hindi)

Table of Contents

ऐतिहासिक अनुसंधान पद्धति :

इतिहास शब्द का उद्गम ‘ Historia ‘ शब्द से हुआ है, जिनका मूल अर्थ होता है सीखना या खोज द्वारा प्राप्त किया गया ज्ञान। प्राचीनकाल में मानव इतिहास के अन्तर्गत भूतकालीन घटनाओं का खोजपूर्ण अध्ययन होता था। एक इतिहासकार का यह कार्य होता है, कि वह भूतकाल की घटनाओं के विषय में सामग्री एकत्रित करे तथा उनकी सही व समुचित व्याख्या करे।

आधुनिक युग में इतिहास के विषय में नया दृष्टिकोण यह है कि यह एक दिये हुए मानव समाज व सांस्कृतिक विशेष की संस्थाओं को दृष्टिगत रखते हुए मानव घटनाओं के विषय में सत्य विवरण प्रदान करे। सत्य तो यह है कि कोई भी घटना सामाजिक शून्य (Social Vacuum) में नहीं होती।

case history method in hindi

अब ऐतिहासिक पद्धति का उद्देश्य भूतकाल और सामाजिक शक्तियों के विषय में अनुसन्धान कर सिद्धान्तों को निरूपित करना हो गया है। अब यह माना जाने लगा है कि वास्तविक इतिहास में केवल राजों, महाराजों और युद्धों का ही उल्लेख नहीं होना चाहिये, अपितु उन सभी सामाजिक, साँस्कृतिक संस्थाओं और गतिविधियों का उल्लेख तथा सही विवचेन होना चाहिए जिन्होंने भूतकाल में समाज की रचना करने या उसको गतिशील बनाने में प्रयत्क्ष व अप्रत्यक्ष रूप से कार्य किया था।

आधुनिक युग में इस प्रकार के इतिहास के निर्माण के लिए प्रो० टॉयन्बी, रोस्टोटजेब, कोल्टन व जैकोब बरखर्डच (Toynbey, Rostovtzeb, Coulton, Jacob Burkhardt) प्रेरक बने हैं, क्योंकि इनकी यह मान्यता रही है कि इतिहास को मानवीय सम्बन्ध, सामाजिक प्रतिमानों, जनरीतियों व प्रथाओं और समाज की अन्य महत्वपूर्ण संस्थाओं से सम्बन्धित रहना चाहिये। इतिहास व समाजविज्ञान इस समान उपागम के फलस्वरूप अत्यन्त निकट आते जा रहे हैं और समाजविज्ञान में ‘ ऐतिहासिक समाज विज्ञान ‘ (Historical Sociology) नामक अध्ययन शाखा के विकास का जिसके प्रमुख विद्वान सिगमंड व डायमंड विरबाय रोबर्ट बैल्लाह, रेमन्ड आइरन आदि हैं।

स्पष्ट है कि इतिहास अब केवल भूतकालीन किस्से-कहानियों तक ही सीमित नहीं रह गया है, बल्कि आज के वैज्ञानिक युग में इसकी विवरणात्मक प्रकृति को भी विश्लेषण रूप प्रदान किया जा रहा है। अब इसके अन्तर्गत, विभिन्न घटनायें घटित होने की परिस्थितियाँ, उनके परिणाम, सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक-सांस्कृतिक तथा राजनैतिक क्षेत्रों में हुए परिवर्तन तथा भविष्य में सम्भव हो सकने वाली रूपरेखा इत्यादि का अध्ययन किया जाने लगा है। लेकिन भूतकालीन समाज के विस्तृत तथा गहन अध्ययन, अतीत के महत्वपूर्ण तथ्यों और घटनाओं, उनके सन्दर्भ में वर्तमान समाज की जानकारी, समाज को प्रभावित करने वाले तत्व या कारक तथा इनके विश्लेषण, इत्यादि के लिये किसी पद्धति की आवश्यकता पड़ती है। यह पद्धति ऐतिहासिक पद्धति ही है। इस पद्धति को परिभाषित करते हुए श्रीमति यंग ने बताया है कि “वह प्रणाली जो ऐसे भूतकालीन सामाजिक तत्वों तथा प्रभावों की, जिन्होंने ‘वर्तमान’ को रूप प्रदान किया है, खोज करके आगमन विधि के आधार पर कुछ सिद्धान्तों का निर्माण करती है, ऐतिहासिक पद्धति मानी जाती है।”

श्रीमती पी. वी. यंग के अनुसार , “ऐतिहासिक पद्धति आगमन के सिद्धांतों के आधार पर अतीत की एवं सामाजिक शक्तियों की खोज है जिन्होंने की वर्तमान को ढाला है।”

ऐतिहासिक पद्धति का अनुकरण करने वाले व्यक्ति को निम्नांकित दोषों से बचने का प्रयास करना चाहिए :

समाजशास्त्रियों का मत है कि ऐतिहासिक पद्धति का अनुकरण करने वाले व्यक्ति को निम्नांकित दोषों से बचने का प्रयास करना चाहिए-

1. अति सरल (Over Simplification) अर्थात् बहुत अधिक सरल सम्बन्धों को ढूँढने व सरल ढंग में तथ्य प्रस्तुत करने का प्रयास करना।

2. अति सामान्यीकरण (Over generalization) अथवा बहुत अधिक सामान्यीकारण की प्रवृत्ति प्रदर्शित करना।

3. पूर्व समय में प्रचलित शब्दों की व्याख्या न कर पाना (Failure to interpret terms prevent in the past)।

4. महत्वपूर्ण व अमहत्वपूर्ण तथ्यों के बीच अन्तर न कर पाना (Failure to distinguish between significant and insignificant facts)।

5. कल्पनात्मक इतिहास (Conjunctural History) बनाने का प्रयास करना।

ऐतिहासिक सामग्री के स्रोत :

ऐतिहासिक पद्धति की द्वारा किसी अध्ययन को पूर्ण करने की दृष्टि से जिस सामग्री की आवश्यकता पड़ती है, उसे कुछ स्रोतों से प्राप्त करना पड़ता है।

श्रीमती यंग ने ऐतिहासिक स्रोतों को तीन भागों में विभाजित किया है-

1. इतिहासकार की पहुँच के भीतर प्राप्त प्रलेख तथा विवधि सामग्री

प्रथम श्रेणी के अन्तर्गत प्राप्त होने वाले प्रलेखों में वेद, पुराण, स्मृतियाँ, उपनिषद् इत्यादि ग्रंथ सम्मिलित किये जा सकते हैं तथा खुदाई के फलस्वरूप प्राप्त वस्तुएं, अजन्ता, एलोरा तथा खजुराहो इत्यादि की गुफाओं के लेख भी महत्वपूर्ण स्रोत बन सकते हैं।

2. साँस्कृतिक इतिहास तथा विश्लेषण इतिहास सामग्री

द्वितीय श्रेणी के अन्तर्गत् सांस्कृतिक य विश्लेषणात्मक इतिहास किसी भी काल या युग में किसी समाज की सांस्कृतिक स्थिति का बोध कराता है तथ उसके विभिन्न साँस्कृतिक तत्वों के स्वरूप एवं उनमें विकास तथा परिवर्तन की ओर ध्यान दिलाता है।

3. विश्वसनीय अवलोकन कर्त्ताओं तथा गवाहों के निजी स्रोत

तृतीय श्रेणी के अन्तर्गत, समय-समय पर व्यक्तिगत इतिहासकारों ने अपनी यात्राओं या पर्यटनों द्वारा जो अवलोकन या निरीक्षण किये हैं और ऐतिहासिक विवरणों के रूप में प्रस्तुत किये हैं, ऐसी सामग्री को सम्मिलित किया जा सकता है।

इस प्रकार की सूचनायें या सामग्री हमें आज भी भारत सरकार के पुरातत्व विभाग के अधीन या विभिन्न राज्यों के संग्रहालयों में देखने तथा अध्ययन करने को उपलब्ध हो सकती हैं। यही कारण है कि प्रायः ऐतिहासिक पद्धति को ही संग्रहालय पद्धति के नाम से जाना जाता है।

ऐतिहासिक पद्धति के चरण :

ऐतिहासिक पद्धति के निम्नांकित चरण हैं जिनका संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत है-

1. समस्या का चुनाव अध्ययन

समस्या इस प्रकार की होनी चाहिए जिससे भूतकालीन समाज के वास्तविक स्वरूप को यथासम्भव यथार्थ रूप से समझा जाना आवश्यक हो तथा उसके आधार पर वर्तमान दशाओं तथा उनमें हुए परिवर्तनों को ज्ञात किया जा सके और भविष्य की प्रवृत्ति का अनुमान लगाना सम्भव हो। उस पर लगने वाले समय, धन व स्वयं की लागत का सही अनुमान लगाने के उपरान्त ही किसी समस्या को चुना जा सकता है।

2. तथ्य संकलन

तथ्यों के संकलन में उनकी प्रकृति तथा उपलब्ध स्रोतों पर विशेष ध्यान देना पड़ता है। अध्ययनकर्त्ता की अपने योग्यता, प्रशिक्षण तथा अनुभव भी उसकी कुशलता में सहायक होते हैं। सरकारी तथा गैर सरकारी प्रलेखों का उचित प्रकार से प्रयोग किया जाना चाहिए। अनावश्यक सामग्री की छटनी कर देनी चहिए।

3. ऐतिहासिक आलोचना

बाह्य आलोचना का अर्थ है कि जो भी प्राथमिक या द्वितीय स्रोत उपलब्ध हो पाये हैं उनकी प्रमाणिकता अथवा वास्तविकता की जाँच की जाये कि कही सामग्री झूठी या जाली तो नहीं है। आन्तरिक आलोचना के अन्तर्गत यह देखना आवश्यक होता है कि किसी भी स्रोत का लेखक कितना सच्चा रहा है? क्या उसने किसी पक्षपात् अभिनति या अज्ञान के वशीभूत होकर तो नहीं लिखा है? क्या उसने घटना विशेष के घटित होते ही लिखा है या बाद में, उसके सूचनादाता कौन रहे हैं और किस प्रकार उसको सूचना प्राप्त हुई और कहाँ तक सूचना को सार्थक माना जाना चाहिये?

4. साम्रगी की व्याख्या

संकलित की गई सामग्री की उपयुक्त आलोचना के उपरान्त उसकी व्याख्या का चरण आता है। अध्ययनकर्त्ता किन-किन तथ्यों के आधार पर किन-किन निष्कर्षो पर पहुँचता है, यह स्पष्टतः बतलाना होता है। इस प्रकार की व्याख्या करने के लिये अध्ययनकर्त्ता को बहुत ही कुशलता व बारीकी से कार्य करना पड़ता है।

5. प्रतिवेदन निर्माण

प्रतिवेदन के निर्माण में अध्ययनकर्ता को ठीक उसी प्रकार कार्य करना होता है। जैसे कि समाजशास्त्र का कोई भी अध्ययनकर्त्ता अपने अध्ययन के प्रतिवेदन को बनाने में करता है। प्रतिवेदन में उपयुक्त शीर्षकों को तथा अनुच्छेदों के अन्तर्गत सामग्री को आकर्षित ढंग से प्रस्तुत करना चाहिये। लिखने की शैली सरल, स्पष्ट, रोचक व वस्तुनिष्ठ होनी चाहिये। सभी महत्वपूर्ण सामग्री, अन्य व्यक्तियों के महत्वपूर्ण कथन आदि को संलग्न पत्रों के रूप में लगाना चाहिये। आवश्यक प्रालेख, रेखाचित्र, मानचित्र, फोटोग्राफ आदि को भी उचित ढंग से लगाना चाहिये।

ऐतिहासिक पद्धति के गुण :

ऐतिहासिक पद्धति समाजशास्त्र की एक विशिष्ट एवं उपयोगी पद्धति है। इस पद्धति के प्रयोग के महत्व को निम्नलिखित रूप में समझा जा सकता है-

1. परिवर्तन के स्वरूप को जानना

ऐतिहासिक पद्धति से हमें यह भी ज्ञान प्राप्त होता है कि समाज एवं संस्कृति में समय-समय पर कौन-कौन से परिवर्तन होते हैं, कौन-कौन सी घटनायें घटित होती रही हैं तथा उनका वर्तमान स्वरूप क्या है? वस्तुतः यह पद्धति परिवर्तन एवं विकास की प्रकृति की ओर संकेत करती है एवं कार्य कारण सम्बन्ध भी स्थापित करती है।

2. भूतकाल के महत्व को जानना

इतिहास को भूतकालीन अनुभवों तथा वर्तमान मनोवृत्तियों एवं मूल्यों के मध्य सम्बन्ध स्थापित करने वाली श्रृंखला माना जा सकता है। इससे हम अतीत की परम्पराओं, प्रथाओं, रीति-रिवाजों, आदर्शों एवं मूल्यों तथा संस्थाओं आदि की जानकारी प्राप्त कर लेते हैं। ऐतिहासिक पद्धति से प्रत्येक लम्बे इतिहास वाले समाज की सही जानकारी प्राप्त होती है।

3. उपकल्पनाओं का निर्माण

यह विधि उपकल्पनाओं का भी स्रोत हैं। जब एक अध्ययनकर्त्ता अध्ययन की जा रही घटना के सन्दर्भ में ऐतिहासिक सामग्री का संकलन करता है तो उसे अनेक नवीन तथ्यों का विभिन्न तथ्यों में सम्बन्धों का पता चलता है, जिसके आधार पर वह उपकल्पनाओं का निर्माण करता है।

4. वर्तमान समाज को समझना

इस पद्धति से हमें उन सामाजिक शक्तियों का परिचय प्राप्त होता है जो समाज के वर्तमान स्वरूप को अतीत पर आधारित करती हैं। दूसरे शब्दों में यह पद्धति अतीत के माध्यम से वर्तमान को समझने में लाभदायक होती हैं।

5. इतिहास की व्यावहारिक उपयोगिता

ऐतिहासिक पद्धति की सामग्री सामाजिक स्थितियों, मानव समस्याओं तथा उनके विकास एवं वर्तमान स्थिति के जानने के लिये भी उपयोगी सिद्ध होती है। यह समाज के पुनर्निर्माण के लिये, वर्तमान समस्याओं पर इसका प्रभाव देखने और इनके सुधारों की आवश्यकता जानने हेतु तथा सामाजिक नियोजन एवं उन्नति हेतु बुद्धिमत्तापूर्ण आधार बनाती है।

6. द्वैतीयक स्रोत के रूप में

वस्तुतः ऐतिहासिक प्रलेख केवल कुछ पीढ़ियों तक ही नहीं, वरन् कितनी ही शताब्दियों तक की घटनाओं को प्रदर्शित करते हैं। ये अधिकांश रूप में सामाजिक शोध के विद्यार्थियों को द्वैतीयक सूचनाओं के प्रयोग करने में, जो इतिहास की ही एक व्याख्या है, सहायक होते हैं।

ऐतिहासिक पद्धति के दोष :

ऐतिहासिक पद्धति उपयोगी होते हुये भी प्रायः अनुपयुक्त पाई जाती है। इसके प्रमुख दोष निम्नांकित है –

1. बिखरे हुये प्रलेख

इस विधि के अर्न्तगत अध्ययन हेतु जो सामग्री चाहिये, वह प्रायः एक साथ एक ही स्थान पर नहीं मिल पाती। इन आवश्यक तथ्यों को बिखरे हुये स्थानों से एकत्रित करने में अधिक समय व धन व्यय होता है। इस सबके बावजूद भी पूर्ण सामग्री उपलब्ध नहीं हो पाती है।

2. सत्यापन की कठिनाई

इस विधि के माध्यम से अतीत की घटनाओं की जांच या उनका सत्यापन करना भी कठिन होता है। श्रीमती यंग के अनुसार, “अनुसंधाकर्त्ता समस्त ऐसी ऐतिहासिक सामग्री का जो सामाजिक स्थितियों तथा संस्थाओं का निर्माण करती है परीक्षण और जाँच नहीं करता है। ज्यादा से ज्यादा, वह केवल कुछ ऐसी घटनाओं का अध्ययन कर सकता है जो उसके अध्ययन के अन्तर्गत विश्वासों, व्यवहार प्रतिमानों तथा प्रथाओं से सम्बन्धित हैं।”

3. घटनाओं की पुरावृत्ति असम्भव

इस विधि के अन्तर्गत जिन घटनाओं एवं तथ्यों का अध्ययन किया जाता है, वे सभी अतीत से सम्बन्धित होते हैं। अध्ययनकर्त्ता को इनके अध्ययन की सहायतार्थ द्वैतीयक सामग्री, प्रलेख व रिकार्ड आदि पर निर्भर रहना पड़ता है। उसके समक्ष उक्त घटनाओं की पुनरावृत्ति भी असम्भव होती है।

4. विश्वसनीयता की समस्या

वस्तुतः स्वयं इतिहासकारों को एक ही स्थान तथा समय पर घटित होने वाली समस्त घटनाओं की पूर्ण जानकारी नहीं होती। फिर इतिहासकार ऐसी बहुत सी बातें भी छोड़ देते हैं, जो समाजशास्त्री के लिये बहुत आवश्यक हो सकती हैं। ऐतिहासिक तथ्य जिन स्रोतों से एकत्रित किये जाते हैं, उनके संकलन-कर्त्ताओं के प्रति भी पूर्ण विश्वसनीयता उत्पन्न नहीं हो पाती।

5. केवल वर्णनात्मक अध्ययन

इस विधि के अन्तर्गत केवल घटनाओं का वर्णन ही किया जा सकता है, विश्लेषण नहीं। लेकिन हम देखते हैं कि आधुनिक युग में समाजशास्त्र में वर्णनात्मक अध्ययनों की महत्ता निरन्तर कम होती जा रही है। इस विधि द्वारा हम गणनात्मक आंकड़ों का संकलन नहीं कर सकते।

6. ऐतिहासिक सामग्री के संकलन में कठिनाई

अतीत की घटनाओं से सम्बन्धित होने के कारण अनेक बार ऐतिहासिक सामग्री भी सरलतापूर्वक उपलब्ध नहीं हो पाती है। बहुत से सरकारी एवं गैर-सरकारी दस्तावेज ऐसे होते हैं जिन्हें अनुसन्धानकर्त्ता नहीं देख सकता।

7. सैद्धान्तिक नियमों की स्थापना सम्भव नहीं

मात्र विशिष्ट घटनाओं के अध्ययन में सहायक होने के कारण यह विधि सैद्धान्तिक नियमों की स्थापना करने में असमर्थ है। इस विधि के अन्तर्गत क्योकि ऐतिहासिक सामग्री की प्रामाणिकता की जाँच करनी कठिन होती है, अतः सैद्धान्तिक नियमों के निर्माण में इससे भी बाधा पड़ती है।

8. सुरक्षा का दोषपूर्ण होना

यह सही है कि पुरातत्व विभाग के अभिलेखागार प्रलेखों तथा रेकार्ड को पर्याप्त मात्रा में संकलित करते हैं, प्रायः इस संकलित सामग्री का अत्यन्त लापरवाही से रखा जाता है, जिसका परिणाम यह होता है कि दीमक, चूहों तथा नमी आदि से उक्त सामग्री की बहुत हानि हो जाती है। अधिक पुराने होने पर ये गल जाते हैं।

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Case history मीनिंग : Meaning of Case history in Hindi - Definition and Translation

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CASE HISTORY MEANING IN HINDI - EXACT MATCHES

Definition of case history.

  • detailed record of the background of a person or group under study or treatment

Information provided about case history:

Case history meaning in Hindi : Get meaning and translation of Case history in Hindi language with grammar,antonyms,synonyms and sentence usages by ShabdKhoj. Know answer of question : what is meaning of Case history in Hindi? Case history ka matalab hindi me kya hai (Case history का हिंदी में मतलब ). Case history meaning in Hindi (हिन्दी मे मीनिंग ) is सेवार्थीवृत्त.English definition of Case history : detailed record of the background of a person or group under study or treatment

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What Is Case Study Method In Hindi? PDF

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What Is Case Study Method In Hindi?

What Is Case Study Method In Hindi? PDF Download, व्यक्तिगत अध्ययन , मामले का अध्ययन, केस स्टडी आदि के बारे में जानेंगे। इन नोट्स के माध्यम से आपके ज्ञान में वृद्धि होगी और आप अपनी आगामी परीक्षा को पास कर सकते है | Notes के अंत में PDF Download का बटन है | तो चलिए जानते है इसके बारे में विस्तार से |

  • सामाजिक अनुसंधान पद्धतियों के विशाल परिदृश्य में, केस स्टडी पद्धति मानव व्यवहार और अनुभवों की जटिल जटिलताओं को समझने के लिए एक शक्तिशाली उपकरण के रूप में सामने आती है।
  • व्यक्तिगत जीवन या उनके वास्तविक जीवन के संदर्भ में विशिष्ट घटनाओं में गहराई से उतरकर, यह विधि अद्वितीय अंतर्दृष्टि प्रदान करती है जो अक्सर मात्रात्मक विश्लेषण से बच जाती है। यह लेख केस स्टडी पद्धति के सार की पड़ताल करता है, इसकी ताकत, अनुप्रयोगों और सामाजिक विज्ञान के क्षेत्र में इसके प्रभाव पर प्रकाश डालता है।

केस स्टडीज को समझना: परिभाषा और उदाहरण

(understanding case studies: definition and examples).

शब्द “CASE” बहुआयामी है और इसका उपयोग कानून, चिकित्सा और मनोविज्ञान सहित हमारे दैनिक जीवन के विभिन्न पहलुओं में होता है। प्रत्येक संदर्भ में, यह शब्द किसी व्यक्ति के बारे में जानकारी एकत्र करने से जुड़ा है ताकि उनके सामने आने वाले मुद्दों या समस्याओं को हल करने में उनकी सहायता की जा सके। यह सिद्धांत मनोविज्ञान और शिक्षा के क्षेत्र में भी लागू होता है, जहां मनोवैज्ञानिक या शैक्षिक चुनौतियों का सामना करने वाले व्यक्तियों की विस्तार से जांच की जाती है। उनके अतीत, वर्तमान और संभावित भविष्य को शामिल करते हुए इस व्यापक विश्लेषण को केस स्टडी कहा जाता है।

  • व्यक्तिगत अध्ययन , जिसे आमतौर पर केस स्टडी कहा जाता है, सामाजिक अनुसंधान में डेटा संग्रह की एक मौलिक विधि है, जिसका व्यापक रूप से विभिन्न सामाजिक विज्ञानों में उपयोग किया जाता है।
  • इसमें एक विशिष्ट सामाजिक इकाई का गहन विश्लेषण शामिल है, जिसमें व्यक्तियों, परिवारों, समूहों, संस्थानों, समुदायों, नस्लों, राष्ट्रों, सांस्कृतिक क्षेत्रों या ऐतिहासिक युगों को शामिल किया जा सकता है।
  • इस पद्धति की तुलना अक्सर ‘सामाजिक माइक्रोस्कोप’ से की जाती है क्योंकि यह शोधकर्ताओं को उल्लेखनीय गहराई के साथ सामाजिक घटनाओं का पता लगाने में सक्षम बनाता है, जिससे जटिल विवरण सामने आते हैं जो अन्य शोध विधियों के माध्यम से अस्पष्ट रह सकते हैं।
  • आम ग़लतफ़हमी के विपरीत कि, यह केवल व्यक्तिगत गतिविधियों और जीवन इतिहास पर केंद्रित है, केस अध्ययन पद्धति अपना दायरा विभिन्न सामाजिक इकाइयों तक बढ़ाती है। शोधकर्ता इस दृष्टिकोण का उपयोग चुनी हुई इकाई के सभी पहलुओं की सावधानीपूर्वक जांच करने के लिए करते हैं, जिससे यह एक व्यापक और विस्तृत अध्ययन बन जाता है।
  • केस अध्ययनों के माध्यम से, सामाजिक वैज्ञानिक छिपी हुई बारीकियों को उजागर करते हैं, जो मानव व्यवहार, सामाजिक संरचनाओं और सांस्कृतिक गतिशीलता की जटिलताओं में अमूल्य अंतर्दृष्टि प्रदान करते हैं।

केस स्टडी के मुख्य तत्व

(key elements of a case study).

1. केस स्टडी की परिभाषा (Definition of a Case Study):

  • एक केस स्टडी में किसी व्यक्ति की शैक्षिक या मनोवैज्ञानिक समस्या का गहन अन्वेषण शामिल होता है, जिसमें उनका इतिहास, वर्तमान स्थिति और भविष्य की संभावनाएं शामिल होती हैं।
  • उदाहरण: सीखने में कठिनाइयों का सामना कर रहे एक छात्र की जांच करना ताकि उसके कारणों, वर्तमान सीखने के माहौल और अकादमिक रूप से सफल होने में मदद करने के लिए संभावित हस्तक्षेपों को समझा जा सके।

2. कानूनी और चिकित्सीय मामलों में समानताएँ (Similarities to Legal and Medical Cases):

  • उसी तरह, जैसे एक वकील एक कानूनी मामले का अध्ययन करता है और एक डॉक्टर एक मरीज के मामले का मूल्यांकन करता है, मनोवैज्ञानिक और शिक्षक मनोवैज्ञानिक या शैक्षिक चुनौतियों का सामना करने वाले व्यक्ति के मामले की जांच करते हैं।
  • उदाहरण: एक मनोवैज्ञानिक व्यवहार संबंधी मुद्दों वाले बच्चे के मामले में पारिवारिक पृष्ठभूमि, स्कूल के माहौल और बच्चे की भावनात्मक स्थिति जैसे कारकों पर विचार करता है।

3. डेटा संग्रह और विश्लेषण (Data Collection and Analysis):

  • केस अध्ययन में विभिन्न प्रकार के डेटा एकत्र करना शामिल है, जिसमें साक्षात्कार, अवलोकन, मनोवैज्ञानिक मूल्यांकन और अकादमिक रिकॉर्ड शामिल हो सकते हैं।
  • उदाहरण: शिक्षकों, अभिभावकों और छात्रों के साथ साक्षात्कार के माध्यम से जानकारी एकत्र करना, साथ ही कक्षा में छात्र के शैक्षणिक प्रदर्शन और व्यवहार का विश्लेषण करना।

4. विस्तृत समझ (Comprehensive Understanding):

  • केस अध्ययन का उद्देश्य व्यक्ति की अद्वितीय परिस्थितियों और अनुभवों को ध्यान में रखते हुए उसकी समस्या की समग्र समझ प्रदान करना है।
  • उदाहरण: एक किशोर के स्कूल से इनकार करने के मामले का अध्ययन करना, न केवल शैक्षणिक दबाव बल्कि सामाजिक संपर्क, मानसिक स्वास्थ्य और पारिवारिक गतिशीलता पर भी विचार करना।

5. समस्या-समाधान दृष्टिकोण (Problem-Solving Approach):

  • सकारात्मक परिणामों को बढ़ावा देने के लिए व्यक्ति की विशिष्ट आवश्यकताओं के अनुरूप प्रभावी समाधानों और हस्तक्षेपों की पहचान करने के लिए केस अध्ययनों का उपयोग किया जाता है।
  • उदाहरण: एक व्यापक केस अध्ययन के निष्कर्षों के आधार पर ध्यान घाटे की सक्रियता विकार (ADHD: Attention Deficit Hyperactivity Disorder) वाले छात्र के लिए एक व्यक्तिगत शिक्षा योजना विकसित करना।

निष्कर्ष: शिक्षा और मनोविज्ञान में केस अध्ययन व्यक्तियों के सामने आने वाली चुनौतियों को समझने और उनका समाधान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। समग्र दृष्टिकोण अपनाकर और किसी व्यक्ति के इतिहास, वर्तमान स्थिति और संभावित भविष्य में गहराई से जाकर, मनोवैज्ञानिक और शिक्षक लक्षित हस्तक्षेप विकसित कर सकते हैं, जो अंततः व्यक्ति की वृद्धि, विकास और कल्याण को सुविधाजनक बना सकता है।

What-Is-Case-Study-Method-In-Hindi

केस स्टडी क्या है?

(what is a case study).

केस स्टडी एक शोध पद्धति है जो किसी विशिष्ट व्यक्ति का उसके प्राकृतिक वातावरण में अध्ययन करने पर केंद्रित होती है। यह दृष्टिकोण शोधकर्ताओं को व्यक्ति के व्यवहार और व्यक्तित्व के विभिन्न पहलुओं में व्यापक अंतर्दृष्टि प्राप्त करने की अनुमति देता है। व्यक्ति की संपूर्णता में जांच करके, केस अध्ययन वास्तविक जीवन के संदर्भ में मानव व्यवहार की गहरी समझ प्रदान करते हैं।

1. व्यवहार अध्ययन की विधि (Method of Behavior Study):

  • केस स्टडीज़ मानव व्यवहार का अध्ययन करने के लिए नियोजित अनुसंधान विधियां हैं। शोधकर्ता अपने वातावरण में व्यक्ति के कार्यों, प्रतिक्रियाओं और अंतःक्रियाओं का बारीकी से निरीक्षण और विश्लेषण करते हैं।
  • उदाहरण: एक मनोवैज्ञानिक एक किशोर में सामाजिक चिंता विकार को समझने के लिए एक केस स्टडी कर रहा है, और विभिन्न सामाजिक स्थितियों में उनके व्यवहार का अवलोकन कर रहा है।

2. किसी विशेष व्यक्ति पर ध्यान दें (Focus on a Particular Person):

  • केस अध्ययन किसी समूह या जनसंख्या के बजाय किसी विशिष्ट व्यक्ति पर ध्यान केंद्रित करते हैं। यह केंद्रित दृष्टिकोण शोधकर्ताओं को किसी व्यक्ति के व्यवहार की जटिलताओं को गहराई से समझने की अनुमति देता है।
  • उदाहरण : ऑटिज़्म स्पेक्ट्रम विकार वाले बच्चे के मामले का अध्ययन करके उनकी अनूठी चुनौतियों, संचार पैटर्न और सामाजिक संपर्कों का पता लगाना।

3. प्राकृतिक पर्यावरण के भीतर अध्ययन (Study within the Natural Environment):

  • केस अध्ययन व्यक्ति के प्राकृतिक वातावरण में आयोजित किए जाते हैं, यह सुनिश्चित करते हुए कि एकत्र किए गए अवलोकन और डेटा उनके विशिष्ट व्यवहार के प्रतिनिधि हैं।
  • उदाहरण: कक्षा सेटिंग में एक शिक्षक का अवलोकन करके उनकी शिक्षण विधियों, छात्रों की बातचीत और कक्षा प्रबंधन तकनीकों को समझना।

4. व्यवहार और व्यक्तित्व की व्यापक समझ (Comprehensive Understanding of Behavior and Personality):

  • केस अध्ययन का उद्देश्य व्यक्ति के व्यवहार और व्यक्तित्व के सभी पहलुओं के बारे में जानकारी इकट्ठा करना है। इसमें उनके विचार, भावनाएँ, कार्य और विभिन्न उत्तेजनाओं के प्रति प्रतिक्रियाएँ शामिल हैं।
  • उदाहरण: पोस्ट-ट्रॉमैटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर (PTHD) वाले एक वयस्क के मामले का विश्लेषण करके उनके ट्रिगर्स, मुकाबला करने के तंत्र और समग्र मनोवैज्ञानिक कल्याण का पता लगाना।

5. व्यवहार विज्ञान में अनुप्रयोग (Applications in Behavioral Sciences):

  • अद्वितीय या दुर्लभ घटनाओं का पता लगाने के लिए मनोविज्ञान, समाजशास्त्र, शिक्षा और संबंधित क्षेत्रों में केस स्टडीज का व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है, जो सिद्धांत विकास और व्यावहारिक अनुप्रयोगों के लिए मूल्यवान अंतर्दृष्टि प्रदान करता है।
  • उदाहरण: एक प्रतिभाशाली बच्चे की सीखने की ज़रूरतों को समझने और उनकी प्रतिभा को निखारने के लिए उचित शैक्षिक रणनीतियाँ विकसित करने के लिए उन पर एक केस अध्ययन आयोजित करना।

निष्कर्ष: केस अध्ययन उनके प्राकृतिक वातावरण में विशिष्ट व्यक्तियों पर ध्यान केंद्रित करके मानव व्यवहार और व्यक्तित्व को समझने में एक शक्तिशाली उपकरण के रूप में कार्य करता है। यह विधि शोधकर्ताओं को व्यवहार की जटिलताओं का पता लगाने की अनुमति देती है, व्यवहार विज्ञान के विभिन्न क्षेत्रों में अकादमिक अनुसंधान और व्यावहारिक हस्तक्षेप दोनों के लिए मूल्यवान ज्ञान प्रदान करती है।

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शिक्षा में केस स्टडी क्या है?

(what is case study in education).

शिक्षा में केस स्टडी एक विशिष्ट शैक्षिक स्थिति, परिदृश्य या समस्या की विस्तृत और गहन जांच है। इसमें किसी शैक्षिक सेटिंग, जैसे स्कूल, कक्षा या शैक्षिक कार्यक्रम के भीतर वास्तविक जीवन की घटनाओं का व्यापक अनुसंधान और विश्लेषण शामिल है। शिक्षा में केस अध्ययन शिक्षण, सीखने और शैक्षिक प्रशासन में शामिल जटिलताओं की सूक्ष्म समझ प्रदान करते हैं।

शिक्षा में केस स्टडीज की मुख्य विशेषताएं

(key characteristics of case studies in education).

1. वास्तविक जीवन शैक्षिक संदर्भ (Real-Life Educational Context):

  • शिक्षा में केस अध्ययन शैक्षिक वातावरण के भीतर वास्तविक जीवन की स्थितियों पर ध्यान केंद्रित करते हैं। ये परिस्थितियाँ कक्षा की चुनौतियों से लेकर स्कूल-व्यापी नीतियों और हस्तक्षेपों तक हो सकती हैं।
  • उदाहरण: एक विशिष्ट ग्रेड-स्तरीय कक्षा में एक नई शिक्षण पद्धति के कार्यान्वयन का विश्लेषण करना।

2. गहन जांच (In-Depth Investigation):

  • केस अध्ययन में चुने गए शैक्षणिक मामले की गहन जांच शामिल होती है। शोधकर्ता गहरी अंतर्दृष्टि प्राप्त करने के लिए साक्षात्कार, अवलोकन, सर्वेक्षण और दस्तावेज़ विश्लेषण जैसे विभिन्न तरीकों के माध्यम से डेटा एकत्र करते हैं।
  • उदाहरण: शिक्षकों, छात्रों और अभिभावकों के साथ साक्षात्कार आयोजित करना, कक्षा की गतिविधियों का अवलोकन करना और छात्र प्रदर्शन डेटा का विश्लेषण करना।

3. बहुआयामी परिप्रेक्ष्य (Multifaceted Perspective):

  • केस अध्ययन कई दृष्टिकोणों पर विचार करता है, जिनमें शिक्षक, छात्र, प्रशासक और कभी-कभी माता-पिता या समुदाय के सदस्य शामिल होते हैं। यह समग्र दृष्टिकोण शैक्षिक मुद्दे का एक सर्वांगीण दृष्टिकोण प्रदान करता है।
  • उदाहरण: समावेशी शिक्षा के लिए स्कूल के दृष्टिकोण का अध्ययन करते समय शिक्षकों, छात्रों और अभिभावकों के दृष्टिकोण की जांच करना।

4. समस्या-समाधान पर ध्यान (Problem-Solving Focus):

  • शिक्षा में केस अध्ययन अक्सर समस्याओं, चुनौतियों या सुधार के क्षेत्रों की पहचान करने के लिए आयोजित किए जाते हैं। शोधकर्ता इन मुद्दों के समाधान के लिए संभावित समाधान और रणनीतियों का पता लगाते हैं।
  • उदाहरण: कम छात्र सहभागिता स्तर की जांच करना और कक्षा में भागीदारी और सीखने में रुचि बढ़ाने के लिए रणनीतियों का प्रस्ताव करना।

5. समृद्ध गुणात्मक डेटा (Rich Qualitative Data):

  • शैक्षिक मामले का विस्तृत विवरण प्रदान करने के लिए शोधकर्ता आख्यानों, उद्धरणों और टिप्पणियों सहित समृद्ध गुणात्मक डेटा इकट्ठा करते हैं। गुणात्मक निष्कर्षों का समर्थन करने के लिए मात्रात्मक डेटा को भी शामिल किया जा सकता है।
  • उदाहरण: व्यापक केस स्टडी रिपोर्ट बनाने के लिए कक्षा अवलोकन नोट्स के साथ छात्र और शिक्षक प्रशंसापत्र का उपयोग करना।

6. शैक्षिक प्रथाओं को सूचित करना (Informing Educational Practices):

  • केस स्टडीज के निष्कर्ष शैक्षिक प्रथाओं, नीतिगत निर्णयों और निर्देशात्मक तरीकों की जानकारी देते हैं। शिक्षक, प्रशासक और नीति निर्माता साक्ष्य-आधारित निर्णय लेने के लिए इन अंतर्दृष्टि का उपयोग कर सकते हैं।
  • उदाहरण: शिक्षकों के लिए व्यावसायिक विकास कार्यशालाओं का मार्गदर्शन करने के लिए प्रभावी शिक्षण विधियों पर एक केस अध्ययन के परिणामों का उपयोग करना।

निष्कर्ष: शिक्षा में केस अध्ययन शैक्षिक प्रणाली के भीतर चुनौतियों और अवसरों की गहन समझ प्रदान करते हैं। विशिष्ट मामलों में गहराई से जाकर, शिक्षक और शोधकर्ता मूल्यवान अंतर्दृष्टि प्राप्त कर सकते हैं, शिक्षण और सीखने की प्रथाओं में निरंतर सुधार और नवाचार को बढ़ावा दे सकते हैं। ये अध्ययन जटिल शैक्षिक समस्याओं के साक्ष्य-आधारित समाधान प्रदान करके शिक्षा के भविष्य को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

केस स्टडी में व्यक्ति के बारे में क्या जानकारी एकत्र की जानी चाहिए?

(what information should be collected about the person in the case study).

किसी मामले का अध्ययन करते समय, जांच के अधीन व्यक्ति के बारे में विशिष्ट जानकारी एकत्र करना गहन और व्यावहारिक विश्लेषण के लिए महत्वपूर्ण है। यह जानकारी व्यक्ति की पृष्ठभूमि, क्षमताओं, व्यवहार और व्यक्तिगत लक्षणों का समग्र दृष्टिकोण प्रदान करती है। इस संदर्भ में, एक व्यापक केस अध्ययन बनाने के लिए कई श्रेणियों के डेटा को एकत्र करने और उनका विश्लेषण करने की आवश्यकता है।

यहां उदाहरणों के साथ प्रत्येक श्रेणी का स्पष्टीकरण दिया गया है:

1. Identifying Data (परिचयात्मक विवरण): इस श्रेणी में व्यक्ति के बारे में बुनियादी जानकारी शामिल है, जैसे उनका नाम, उम्र, लिंग, पता, संपर्क विवरण और कोई अन्य प्रासंगिक व्यक्तिगत पहचान विवरण। ये विवरण यह समझने के लिए आधार प्रदान करते हैं कि व्यक्ति कौन है।

  • नाम: जॉन स्मिथ
  • लिंग: पुरुष
  • पता: 123 मेन स्ट्रीट, एनीटाउन, यूएसए
  • फ़ोन नंबर: (555) 123-4567

2. Birth Information (जन्म सम्बन्धी जानकारी): इस श्रेणी में व्यक्ति के जन्म से संबंधित विवरण शामिल हैं, जिसमें उनकी जन्मतिथि, जन्म स्थान और उनके जन्म के आसपास की कोई भी महत्वपूर्ण घटना या परिस्थितियाँ शामिल हैं।

  • जन्मतिथि: 10 जून 1998
  • जन्म स्थान: सिटी जनरल हॉस्पिटल, एनीटाउन, यूएसए

3. Health Record (स्वास्थ्य सम्बन्धी जानकारी): इस अनुभाग में व्यक्ति के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के बारे में जानकारी एकत्र करना शामिल है। इसमें चिकित्सा इतिहास, वर्तमान स्वास्थ्य स्थितियां, दवाएं, एलर्जी और कोई भी प्रासंगिक स्वास्थ्य मूल्यांकन या निदान शामिल हो सकता है।

  • चिकित्सा इतिहास : बचपन से अस्थमा
  • वर्तमान स्वास्थ्य स्थिति: अवसाद और चिंता का प्रबंधन
  • एलर्जी: कोई नहीं

4. Family Data (परिवार सम्बन्धी जानकारी): यह श्रेणी व्यक्ति की पारिवारिक पृष्ठभूमि पर केंद्रित है, जिसमें माता-पिता, भाई-बहन और परिवार के अन्य करीबी सदस्यों के बारे में विवरण शामिल हैं। पारिवारिक गतिशीलता और रिश्तों पर जानकारी महत्वपूर्ण हो सकती है।

  • माता-पिता: जेन स्मिथ (मां) और मार्क स्मिथ (पिता)
  • भाई-बहन: सारा (बड़ी बहन) और डेविड (छोटा भाई)

5. Socio- Economic Status (सामाजिक-आर्थिक स्थिति): यहां, आप व्यक्ति की आर्थिक और सामाजिक स्थिति, उनके व्यवसाय, आय, शैक्षिक पृष्ठभूमि और किसी भी प्रासंगिक सामाजिक-आर्थिक कारकों सहित डेटा एकत्र करते हैं।

  • व्यवसाय: पूर्णकालिक छात्र और अंशकालिक कैशियर
  • आय: $20,000 प्रति वर्ष
  • शैक्षिक पृष्ठभूमि: हाई स्कूल स्नातक

6. Level of Intelligence (बुद्धि का स्तर ): यह अनुभाग व्यक्ति की बौद्धिक क्षमताओं और संज्ञानात्मक कार्यप्रणाली का आकलन करता है। इसमें आईक्यू स्कोर, मानकीकृत परीक्षण परिणाम या बुद्धि के अन्य आकलन शामिल हो सकते हैं।

  • आईक्यू स्कोर: 120 (औसत से ऊपर)

7. Educational Records (शिक्षात्मक जानकारी): व्यक्ति के शैक्षणिक इतिहास से संबंधित जानकारी इकट्ठा करें, जिसमें स्कूल में पढ़ाई, ग्रेड, शैक्षणिक उपलब्धियां और किसी भी प्रासंगिक शैक्षणिक मूल्यांकन शामिल हैं।

  • हाई स्कूल: एनीटाउन हाई स्कूल
  • पुरस्कार: वेलेडिक्टोरियन

8. Co- Curricular Activities (पाठ्य सहगामी क्रियाएँ): इस श्रेणी में क्लब, खेल, शौक या स्वयंसेवी कार्य जैसे पाठ्येतर या सह-पाठयक्रम गतिविधियों में व्यक्ति की भागीदारी के बारे में विवरण शामिल हैं।

  • पाठ्येतर गतिविधियाँ: शतरंज क्लब, स्थानीय पशु आश्रय में स्वयंसेवक

9. Adjustment (समायोजन): इस बारे में जानकारी एकत्र करें कि व्यक्ति विभिन्न परिस्थितियों या वातावरणों में कैसे अनुकूलन और समायोजन करता है। इसमें उनके मुकाबला करने के तंत्र, तनाव कारक और परिवर्तन को संभालने के तरीके शामिल हो सकते हैं।

  • समायोजन: परिवर्तन और नए वातावरण के साथ संघर्ष करता है, दिनचर्या को प्राथमिकता देता है

10. Behaviour in the classroom (कक्षा- कक्ष में व्यवहार): यह अनुभाग शैक्षणिक सेटिंग में व्यक्ति के व्यवहार और प्रदर्शन की जांच करता है, जिसमें उनकी भागीदारी, शिक्षकों और साथियों के साथ बातचीत और सीखने की शैली शामिल है।

  • कक्षा व्यवहार: सक्रिय रूप से भाग लेता है, साथियों के साथ सहयोग करता है

11. Behaviour in the playground (खेल के मैदान में व्यवहार): गैर-शैक्षणिक सेटिंग्स में व्यक्ति के व्यवहार और बातचीत का पता लगाएं, जैसे कि अवकाश या खाली समय के दौरान। इससे उनके सामाजिक कौशल और रिश्तों के बारे में जानकारी मिल सकती है।

  • खेल का मैदान व्यवहार : टीम खेल खेलना पसंद करता है, और उसके करीबी दोस्तों का एक छोटा समूह है

12. Personality Traits (व्यक्तित्व के गुण): व्यक्ति के व्यक्तित्व लक्षणों के बारे में जानकारी एकत्र करें, जिसमें उनका स्वभाव, ताकत, कमजोरियां और किसी भी व्यक्तित्व का आकलन शामिल है।

  • व्यक्तित्व लक्षण: बहिर्मुखी, सहानुभूतिपूर्ण, विस्तार-उन्मुख

13. Educational and Vocational Plan (शैक्षिक तथा व्यावसायिक योजना): यह श्रेणी व्यक्ति के भविष्य के शैक्षिक और व्यावसायिक लक्ष्यों, आकांक्षाओं और कैरियर विकास या आगे की शिक्षा की योजनाओं की रूपरेखा तैयार करती है।

  • शैक्षिक योजना (Educational Plan): मनोविज्ञान में स्नातक की डिग्री हासिल करें
  • व्यावसायिक योजना (Vocational Plan): परामर्शदाता या चिकित्सक के रूप में कार्य करें
  • उदाहरण: पर्यावरण विज्ञान में डिग्री हासिल करने और एक पर्यावरण संरक्षण संगठन के लिए काम करने की इच्छा रखता है।

14. Analysis (विश्लेषण):

  • यह वह जगह है जहां आप सभी एकत्रित जानकारी का गहन विश्लेषण करते हैं, निष्कर्ष निकालते हैं और व्यक्ति के जीवन, व्यवहार और विशेषताओं में पैटर्न या रुझान की पहचान करते हैं।
  • उदाहरण: विश्लेषण इंगित करता है कि व्यक्ति के मजबूत नेतृत्व कौशल और पर्यावरण संरक्षण के जुनून को परामर्श कार्यक्रमों और पारिस्थितिकी और स्थिरता से संबंधित पाठ्येतर गतिविधियों के माध्यम से पोषित किया जा सकता है।

कुल मिलाकर, जानकारी के इस व्यापक सेट को इकट्ठा करने से मामले के अध्ययन में व्यक्ति की पूरी समझ मिलती है, यदि आवश्यक हो तो सूचित निर्णय लेने और हस्तक्षेप की सुविधा मिलती है।

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केस स्टडी के चरण

(steps of case study).

एक केस स्टडी में किसी विशेष समस्या या परिदृश्य को समझने, विश्लेषण करने और हल करने की एक व्यवस्थित प्रक्रिया शामिल होती है। ये चरण किसी केस अध्ययन को प्रभावी ढंग से संचालित करने के लिए एक संरचित ढांचे के रूप में काम करते हैं। प्रत्येक चरण मामले की जटिलताओं को सुलझाने और सूचित निष्कर्ष पर पहुंचने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

1. मामले को समझना (Understanding the Case):

  • परिभाषा: मामले की पृष्ठभूमि, संदर्भ और मुख्य विवरण को अच्छी तरह से समझें। इसमें शामिल बारीकियों की गहरी समझ हासिल करने के लिए स्थिति में खुद को डुबो देना शामिल है।
  • उदाहरण: छात्रों के प्रदर्शन में गिरावट की प्रवृत्ति से जुड़े मामले के अध्ययन के लिए, स्कूल की जनसांख्यिकी, शिक्षण विधियों और पाठ्यक्रम में हाल के बदलावों को समझना महत्वपूर्ण है।

2. समस्या का चयन (Selecting the Problem):

  • परिभाषा: मामले के भीतर उस विशिष्ट समस्या या मुद्दे को पहचानें और परिभाषित करें जिसे संबोधित करने की आवश्यकता है। इस कदम में गहन विश्लेषण के लिए मामले के एक विशेष पहलू पर ध्यान केंद्रित करना शामिल है।
  • उदाहरण: समस्या की पहचान पिछले दो वर्षों में हाई स्कूल में छात्रों के गणित दक्षता अंकों में गिरावट के रूप में की जा सकती है।

3. समस्या के कारणों का पता लगाना (Finding Out the Causes of the Problem):

  • परिभाषा: पहचानी गई समस्या के मूल कारणों की जांच और विश्लेषण करें। इस चरण में समस्या में योगदान देने वाले विभिन्न कारकों की जांच करना शामिल है।
  • उदाहरण: कारणों में अप्रभावी शिक्षण विधियां, संसाधनों की कमी, अपर्याप्त शिक्षक प्रशिक्षण, या छात्रों की सीखने की क्षमताओं को प्रभावित करने वाले सामाजिक-आर्थिक कारक शामिल हो सकते हैं।

4. संभावित समाधानों के बारे में सोचना (Thinking of Possible Solutions):

  • परिभाषा: पहचाने गए कारणों के समाधान के लिए संभावित समाधानों या हस्तक्षेपों पर विचार-मंथन करें। रचनात्मक सोच को प्रोत्साहित करें और विभिन्न दृष्टिकोणों पर विचार करें।
  • उदाहरण: संभावित समाधानों में इंटरैक्टिव शिक्षण तकनीकों को लागू करना, पाठ्यपुस्तकें और शैक्षिक सॉफ्टवेयर जैसे अतिरिक्त संसाधन प्रदान करना, शिक्षक प्रशिक्षण कार्यशालाओं का आयोजन करना या सामुदायिक सहभागिता कार्यक्रम शुरू करना शामिल हो सकता है।

5. सर्वोत्तम समाधान का चयन (Selecting the Best Solution):

  • परिभाषा: मामले के संदर्भ के साथ व्यवहार्यता, प्रभावशीलता और संरेखण के आधार पर प्रस्तावित समाधानों का मूल्यांकन करें। वह समाधान चुनें जिससे समस्या का प्रभावी ढंग से समाधान होने की सबसे अधिक संभावना हो।
  • उदाहरण: प्रस्तावित समाधानों का मूल्यांकन करने के बाद, नियमित शिक्षक प्रशिक्षण सत्रों के साथ इंटरैक्टिव शिक्षण तकनीकों को लागू करना छात्रों को संलग्न करने और शिक्षक प्रभावशीलता को बढ़ाने की क्षमता के कारण सर्वोत्तम समाधान के रूप में चुना गया है।

6. मूल्यांकन करना (To Evaluate):

  • परिभाषा: चयनित समाधान को लागू करें और उसके प्रभाव की बारीकी से निगरानी करें। परिणामों का मूल्यांकन करें और मूल्यांकन करें कि क्या कार्यान्वित समाधान ने समस्या का प्रभावी ढंग से समाधान किया है।
  • उदाहरण: इंटरैक्टिव शिक्षण विधियों और शिक्षक प्रशिक्षण कार्यशालाओं को लागू करने के बाद, नियमित रूप से मानकीकृत परीक्षणों और कक्षा अवलोकनों के माध्यम से छात्रों की प्रगति का आकलन करें। यदि गणित दक्षता स्कोर में महत्वपूर्ण सुधार होता है, तो समाधान को सफल माना जा सकता है।

निष्कर्ष: इन चरणों का व्यवस्थित रूप से पालन करने से केस अध्ययन के लिए एक व्यापक और रणनीतिक दृष्टिकोण सुनिश्चित होता है। मामले को समझकर, एक केंद्रित समस्या का चयन करके, उसके कारणों की पहचान करके, समाधानों पर विचार-मंथन करके, सर्वश्रेष्ठ का चयन करके और परिणामों का मूल्यांकन करके, शोधकर्ता और चिकित्सक वास्तविक दुनिया की समस्याओं को प्रभावी ढंग से संबोधित करने के लिए सूचित रणनीति विकसित कर सकते हैं। यह संरचित प्रक्रिया निर्णय लेने को बढ़ाती है, आलोचनात्मक सोच को प्रोत्साहित करती है और अध्ययन और अभ्यास के विभिन्न क्षेत्रों में साक्ष्य-आधारित समाधानों को बढ़ावा देती है।

केस स्टडी का उद्देश्य

(purpose of the case study).

व्यवहार विश्लेषण और परामर्श के संदर्भ में एक केस अध्ययन का उद्देश्य विशिष्ट व्यक्तियों या स्थितियों की विस्तृत जांच प्रदान करना है, जिसका उद्देश्य व्यवहार संबंधी समस्याओं का सटीक निदान करना और प्रभावी मार्गदर्शन और परामर्श प्रदान करना है। प्रत्येक मामले की अनूठी परिस्थितियों में गहराई से जाकर, पेशेवर लक्षित हस्तक्षेप विकसित कर सकते हैं, व्यक्तिगत मार्गदर्शन प्रदान कर सकते हैं और इसमें शामिल व्यक्तियों की समग्र भलाई को बढ़ा सकते हैं।

1. व्यवहार संबंधी समस्याओं का निदान और उपचार (Diagnosing and Treating Behavioral Problems):

  • उद्देश्य: व्यवहार संबंधी मामले के अध्ययन का एक प्राथमिक उद्देश्य व्यक्तियों में अंतर्निहित व्यवहार संबंधी समस्याओं का निदान करना है। विस्तृत विश्लेषण के माध्यम से, पेशेवर समस्याग्रस्त व्यवहार के पैटर्न, ट्रिगर और संभावित कारणों की पहचान कर सकते हैं।
  • उदाहरण: एक ऐसे बच्चे के मामले के अध्ययन पर विचार करें जो स्कूल में आक्रामक व्यवहार प्रदर्शित करता है। बच्चे की बातचीत, पारिवारिक गतिशीलता और स्कूल के माहौल का विश्लेषण करके, एक मनोवैज्ञानिक अंतर्निहित कारणों का निदान कर सकता है, जैसे कि बदमाशी के अनुभव या अनसुलझे भावनात्मक मुद्दे, और एक अनुरूप हस्तक्षेप योजना विकसित कर सकता है।

2. बेहतर मार्गदर्शन और परामर्श प्रदान करना (Providing Better Guidance and Counseling):

  • उद्देश्य: केस अध्ययन व्यक्तिगत मार्गदर्शन और परामर्श प्रदान करने के लिए एक आधार के रूप में कार्य करता है। किसी व्यक्ति के सामने आने वाली अनोखी चुनौतियों को समझकर, परामर्शदाता व्यक्ति की आवश्यकताओं के अनुरूप विशिष्ट सलाह, मुकाबला करने की रणनीतियाँ और समर्थन तंत्र प्रदान कर सकते हैं।
  • उदाहरण: एक केस स्टडी की कल्पना करें जिसमें एक किशोर शैक्षणिक तनाव और आत्मसम्मान के मुद्दों से जूझ रहा हो। निष्कर्षों के आधार पर, एक परामर्शदाता किशोरों की चिंताओं को प्रभावी ढंग से संबोधित करने के लिए तनाव प्रबंधन तकनीकों, आत्मविश्वास निर्माण अभ्यास और शैक्षणिक सहायता सहित लक्षित मार्गदर्शन प्रदान कर सकता है।

निष्कर्ष: व्यवहार विश्लेषण और परामर्श में केस अध्ययन का उद्देश्य अंतर्निहित मुद्दों का निदान करना और अनुकूलित मार्गदर्शन और समर्थन प्रदान करना है। व्यक्तिगत मामलों पर ध्यान केंद्रित करके, पेशेवर व्यवहार संबंधी समस्याओं की सूक्ष्म समझ हासिल कर सकते हैं, जिससे वे सटीक हस्तक्षेप लागू करने में सक्षम हो सकते हैं जो शामिल व्यक्तियों के जीवन की समग्र गुणवत्ता को बढ़ाते हैं। ये अध्ययन प्रत्येक व्यक्ति की विशिष्ट आवश्यकताओं के अनुरूप साक्ष्य-आधारित समाधान पेश करके मानसिक और भावनात्मक कल्याण को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

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केस स्टडीज की विशेषताएं

(characteristics of case studies).

केस स्टडीज़ एक शोध पद्धति है जो उनकी गहराई और किसी विशेष व्यक्ति, इकाई या संस्थान के अध्ययन पर ध्यान केंद्रित करने की विशेषता है। जांच के तहत विषय की व्यापक समझ हासिल करने के प्राथमिक उद्देश्य के साथ शिक्षा, व्यवसाय, कानून और चिकित्सा जैसे विभिन्न क्षेत्रों में इनका व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है। निम्नलिखित विशेषताएँ केस अध्ययन की प्रकृति को परिभाषित करने में मदद करती हैं:

1. किसी व्यक्ति या संस्था का गहन अध्ययन (In-Depth Study of a Person or Institution):

  • विशेषताएँ: केस अध्ययन में किसी विशिष्ट व्यक्ति, संगठन या संस्था की विस्तृत और गहन जाँच शामिल होती है। यह व्यापक दृष्टिकोण शोधकर्ताओं को विषय के विभिन्न पहलुओं का पता लगाने की अनुमति देता है।
  • उदाहरण: चिकित्सा के क्षेत्र में, एक केस स्टडी में एक दुर्लभ चिकित्सा स्थिति को समझने के लिए रोगी के चिकित्सा इतिहास, लक्षण, उपचार और परिणामों की गहन जांच शामिल हो सकती है।

2. अध्ययन के माध्यम से सूचना संग्रहण (Information Collection through Study):

  • विशेषताएँ: विषय का गहनता से अध्ययन करके डेटा एकत्र किया जाता है। शोधकर्ता प्रासंगिक जानकारी इकट्ठा करने के लिए साक्षात्कार, अवलोकन, सर्वेक्षण और दस्तावेज़ विश्लेषण जैसे विभिन्न तरीकों का इस्तेमाल करते हैं।
  • उदाहरण: व्यावसायिक संदर्भ में, एक केस अध्ययन में प्रमुख हितधारकों का साक्षात्कार लेना, वित्तीय रिकॉर्ड का विश्लेषण करना और कंपनी की सफलता या विफलता में योगदान देने वाले कारकों का आकलन करने के लिए व्यावसायिक संचालन का अवलोकन करना शामिल हो सकता है।

3. अनेक क्षेत्रों में प्रयोज्यता (Applicability Across Multiple Fields):

  • विशेषताएँ: केस अध्ययन बहुमुखी हैं और शिक्षा, व्यवसाय, कानून, चिकित्सा और अन्य सहित विभिन्न विषयों में आयोजित किए जा सकते हैं। यह विधि विभिन्न शोध प्रश्नों और उद्देश्यों के अनुकूल है।
  • उदाहरण: शिक्षा के क्षेत्र में, एक केस स्टडी का उपयोग एक नई शिक्षण पद्धति की प्रभावशीलता का पता लगाने के लिए किया जा सकता है, जबकि कानून में, इसे एक हाई-प्रोफाइल अदालती मामले में उपयोग की जाने वाली कानूनी रणनीतियों का विश्लेषण करने के लिए नियोजित किया जा सकता है।

4. व्यक्ति या इकाई पर ध्यान दें (Focus on the Individual or Entity):

  • विशेषताएँ: केस अध्ययन एक केंद्रीय विषय के इर्द-गिर्द घूमते हैं, चाहे वह कोई व्यक्ति, संस्था या विशिष्ट मुद्दा हो। संपूर्ण शोध प्रक्रिया के दौरान यह विषय अध्ययन के केंद्र में रहता है।
  • उदाहरण: शैक्षिक अनुसंधान के संदर्भ में, यदि कोई छात्र एक ही कक्षा में लगातार असफल होता है, तो व्यक्तिगत छात्र केस स्टडी का केंद्र बिंदु बन जाता है।

5. विस्तृत जांच और डेटा विश्लेषण (Detailed Investigation and Data Analysis):

  • विशेषताएँ: केस अध्ययन में सावधानीपूर्वक जांच और डेटा संग्रह शामिल होता है। शोधकर्ता विषय वस्तु में गहराई से उतरते हैं, डेटा का सावधानीपूर्वक विश्लेषण करते हैं, और अंतर्निहित कारणों और कारकों को उजागर करने का प्रयास करते हैं।
  • उदाहरण: संघर्षरत छात्र के मामले में, शोधकर्ता छात्र, शिक्षकों और अभिभावकों के साथ साक्षात्कार आयोजित कर सकते हैं, पिछले शैक्षणिक रिकॉर्ड का विश्लेषण कर सकते हैं और आवर्ती विफलताओं के कारणों का पता लगाने के लिए कक्षा की बातचीत का निरीक्षण कर सकते हैं।

निष्कर्ष: केस अध्ययन की विशेषताएं, जिसमें उनकी गहन प्रकृति, सूचना एकत्र करने का दृष्टिकोण, अंतर-विषयक प्रयोज्यता, विषय-केंद्रित पद्धति और कठोर जांच शामिल है, उन्हें विभिन्न क्षेत्रों में एक मूल्यवान अनुसंधान उपकरण बनाती है। केस अध्ययन जटिल वास्तविक दुनिया के परिदृश्यों में अंतर्दृष्टि प्रदान करते हैं और विशिष्ट मुद्दों की गहरी समझ प्रदान करते हैं, अंततः साक्ष्य-आधारित निर्णय लेने और समस्या-समाधान में योगदान करते हैं।

बाल व्यवहार के अध्ययन में केस स्टडी के लाभ

(advantages of case study in studying child behavior).

केस अध्ययन एक मूल्यवान शोध पद्धति है, खासकर जब बच्चों जैसे जटिल व्यवहारों का अध्ययन किया जाता है। यह दृष्टिकोण बच्चे के प्राकृतिक वातावरण के भीतर उसके व्यवहार की गहराई से खोज करने की अनुमति देता है, जिससे उनके कार्यों, प्रतिक्रियाओं और बातचीत की व्यापक समझ बनती है।

1. बाल व्यवहार का विस्तृत अध्ययन (Detailed Study of Child Behavior):

  • लाभ: केस अध्ययन शोधकर्ताओं को उनके विशिष्ट वातावरण में बच्चे के व्यवहार के हर पहलू का अध्ययन करने में सक्षम बनाता है, और उन बारीकियों को पकड़ता है जो व्यापक अनुसंधान विधियों में छूट सकती हैं।
  • उदाहरण: स्कूल और घर पर साथियों, शिक्षकों और परिवार के सदस्यों के साथ एक बच्चे की बातचीत का अवलोकन और दस्तावेजीकरण करना, उनके सामाजिक व्यवहार का एक व्यापक दृष्टिकोण प्रदान करना।

2. बाल व्यवहार और उसके कारणों को समझना (Understanding Child Behavior and Its Reasons):

  • लाभ: केस अध्ययन से शोधकर्ताओं को बच्चे के व्यवहार के पीछे के कारणों का पता लगाने में मदद मिलती है। यह गहरी समझ ट्रिगर्स, प्रेरणाओं और अंतर्निहित कारणों की पहचान करने में मदद करती है, जिससे अधिक सूचित हस्तक्षेप होता है।
  • उदाहरण: ऐसे मामले का पता लगाना जहां एक बच्चा आक्रामक व्यवहार प्रदर्शित करता है; विस्तृत विश्लेषण से पता चल सकता है कि यह व्यवहार पिछले आघात या अनसुलझे भावनात्मक मुद्दों से उत्पन्न होता है।

3. समस्याग्रस्त और कुसमायोजित बच्चों का अध्ययन  (Studying Problematic and Maladjusted Children):

  • लाभ: समस्याग्रस्त या कुसमायोजित बच्चों से निपटने के दौरान केस अध्ययन विशेष रूप से उपयोगी होते हैं। व्यक्तिगत मामलों पर ध्यान केंद्रित करके, पेशेवर बच्चे की विशिष्ट आवश्यकताओं को संबोधित करते हुए, अनुरूप सहायता और समर्थन प्रदान कर सकते हैं।
  • उदाहरण: स्कूल से इनकार करने वाले व्यवहार वाले बच्चे का अध्ययन करना; एक केस अध्ययन के माध्यम से, शिक्षक और मनोवैज्ञानिक सामाजिक चिंता या बदमाशी जैसे मूल कारणों की पहचान कर सकते हैं, और बच्चे को स्कूल के माहौल में समायोजित करने में मदद करने के लिए रणनीतियों को लागू कर सकते हैं।

4. सावधानीपूर्वक तैयारी के कारण विश्वसनीयता (Reliability Due to Careful Preparation):

  • लाभ: केस अध्ययन में सावधानीपूर्वक तैयारी शामिल होती है, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि डेटा संग्रह और विश्लेषण सटीक और विश्वसनीय हैं। यह सावधानीपूर्वक दृष्टिकोण अध्ययन के परिणामों की विश्वसनीयता को बढ़ाता है।
  • उदाहरण: शिक्षकों, अभिभावकों और बच्चे के साथ साक्षात्कार आयोजित करने के साथ-साथ कक्षा के व्यवहार का अवलोकन करना और शैक्षणिक रिकॉर्ड का विश्लेषण करना, एक व्यापक और विश्वसनीय केस अध्ययन परिणाम सुनिश्चित करता है।

निष्कर्ष: बच्चे के व्यवहार का अध्ययन करने में केस स्टडी के फायदे महत्वपूर्ण हैं, जो बच्चे के कार्यों और प्रेरणाओं की गहरी समझ प्रदान करते हैं। व्यक्तिगत मामलों पर ध्यान केंद्रित करके, शोधकर्ता और चिकित्सक लक्षित सहायता प्रदान कर सकते हैं, जिससे व्यवहार संबंधी चुनौतियों का सामना करने वाले बच्चों के लिए अधिक प्रभावी हस्तक्षेप और बेहतर परिणाम प्राप्त हो सकते हैं। मामले के अध्ययन में शामिल सावधानीपूर्वक तैयारी और विस्तृत विश्लेषण उनकी विश्वसनीयता में योगदान देता है और उन्हें बाल व्यवहार को समझने और संबोधित करने में अमूल्य उपकरण बनाता है।

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Table: Perspectives on Individual Study: Definition by Prominent Social Scientists

(व्यक्तिगत अध्ययन पर परिप्रेक्ष्य: प्रमुख सामाजिक वैज्ञानिकों द्वारा परिभाषा).

स्पष्टीकरण:

  • तालिका विभिन्न सामाजिक वैज्ञानिकों द्वारा प्रदान की गई व्यक्तिगत अध्ययन की विविध परिभाषाएँ प्रस्तुत करती है। प्रत्येक परिभाषा सामाजिक अनुसंधान में व्यक्तिगत अध्ययन की गहराई, दायरे और उद्देश्य पर एक अद्वितीय परिप्रेक्ष्य प्रदान करती है।
  • पी.वी. यंग व्यक्तिगत अध्ययन की व्यापक प्रकृति पर जोर देते हैं, विभिन्न सामाजिक इकाइयों पर इसकी प्रयोज्यता को रेखांकित करते हैं।
  • बी. सेंग और बी. सेंग गुणात्मक पहलुओं पर ध्यान केंद्रित करते हैं, इस पद्धति के अभिन्न अंग सावधानीपूर्वक अवलोकन पर प्रकाश डालते हैं।
  • हॉवर्ड ओडोम और कैथरीन ज़ोचर प्रासंगिक विश्लेषण पर जोर देते हैं, एक व्यापक सामाजिक ढांचे के भीतर व्यक्तिगत तत्वों की जांच पर जोर देते हैं।
  • सिन पाओ युंग व्यक्तिगत अध्ययन की गहन, व्यवस्थित प्रकृति पर जोर देते हैं, जिसका लक्ष्य समाज के भीतर व्यक्तियों की भूमिकाओं को समझना है।
  • ये विविध परिभाषाएँ सामूहिक रूप से सामाजिक अनुसंधान में व्यक्तिगत अध्ययन पद्धति की समग्र समझ में योगदान करती हैं।

Table: Pros and Cons of the Case Study Method

(केस स्टडी पद्धति के फायदे और नुकसान).

यहां केस स्टडी पद्धति के गुण और दोषों का सारांश देने वाली एक तालिका है:

विशिष्ट मामलों में विस्तृत अंतर्दृष्टि प्रदान करने में केस अध्ययन पद्धति की अपनी ताकत है, लेकिन इसमें सीमाएं भी हैं, विशेष रूप से सामान्यीकरण, पूर्वाग्रह और बाहरी डेटा पर निर्भरता के संदर्भ में। शोधकर्ता अक्सर इसकी सीमाओं को संतुलित करने के लिए अन्य शोध विधियों के साथ इसका उपयोग करते हैं।

  • सामाजिक शोध में केस स्टडी पद्धति विद्वानों के बीच व्यापक बहस का विषय रही है। कुछ आलोचकों का तर्क है कि व्यक्तिगत डेटा, विशेष रूप से जीवन इतिहास, का मात्रात्मक विश्लेषण नहीं किया जा सकता है, जिससे सांख्यिकीय प्रक्रियाओं के बिना यह विधि अव्यावहारिक और अवैज्ञानिक लगती है। हालाँकि, विधि के समर्थकों का तर्क है कि यदि किसी विशिष्ट समूह के प्रतिनिधियों के रूप में चुने गए व्यक्ति ठोस जीवन अनुभव प्रदान कर सकते हैं, तो उनका डेटा उसी समूह के अन्य लोगों पर लागू किया जा सकता है। सांख्यिकीय परीक्षणों की अनुपस्थिति में, केस स्टडी पद्धति को गहन गुणात्मक विश्लेषण के लिए एक मूल्यवान उपकरण बनाने के लिए शोधकर्ताओं को अपने अच्छी तरह से प्रशिक्षित अनुभव, अंतर्दृष्टि और निर्णय पर भरोसा करना चाहिए। अपनी चुनौतियों के बावजूद, यह विधि सामाजिक अनुसंधान में जटिल मानवीय अनुभवों और व्यवहारों को समझने के लिए एक मूल्यवान दृष्टिकोण बनी हुई है।

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शांति की जीत: ग्रामीण भारत में लचीलेपन और शिक्षा का एक केस स्टडी

(shanti’s triumph: a case study of resilience and education in rural india).

ग्रामीण भारत की हरी-भरी हरियाली के बीच बसे एक सुदूर गाँव में, शैक्षिक परिवर्तन की एक उल्लेखनीय कहानी मौजूद है। सुंदरपुर नाम के इस गांव को गरीबी, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक सीमित पहुंच और लैंगिक असमानता सहित कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा। हालाँकि, युवा लड़कियों को सशक्त बनाने, सामाजिक मानदंडों को तोड़ने और सीखने की संस्कृति को बढ़ावा देने के उद्देश्य से एक अभिनव शैक्षिक पहल के कारण समुदाय बदलाव के कगार पर था।

केस स्टडी उद्देश्य:

  • सुंदरपुर में शैक्षिक सशक्तिकरण कार्यक्रम के परिवर्तनकारी प्रभाव का पता लगाने के लिए, एक वंचित पृष्ठभूमि की युवा लड़की शांति के जीवन और शैक्षणिक सफलता और सशक्तिकरण की दिशा में उसकी यात्रा पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा।
  • केस स्टडी सुंदरपुर की एक दृढ़निश्चयी और उज्ज्वल युवा लड़की शांति के इर्द-गिर्द घूमती है, जिसने अपने समुदाय को बांधने वाली निरक्षरता की जंजीरों से मुक्त होने का सपना देखा था। स्थानीय गैर सरकारी संगठनों और उत्साही शिक्षकों द्वारा समर्थित एक शैक्षिक सशक्तिकरण कार्यक्रम के कार्यान्वयन के साथ, सुंदरपुर की युवा लड़कियों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, परामर्श और व्यावसायिक प्रशिक्षण के अवसर प्रदान किए गए।

अनुसंधान प्रश्न:

  • शैक्षिक सशक्तिकरण कार्यक्रम ने शांति के शैक्षणिक प्रदर्शन, आत्मविश्वास और आकांक्षाओं को कैसे प्रभावित किया?
  • शांति की शैक्षिक यात्रा में मार्गदर्शन और सामुदायिक समर्थन ने क्या भूमिका निभाई?
  • कार्यक्रम ने गांव के भीतर सामाजिक मानदंडों और लैंगिक असमानताओं को कैसे संबोधित किया?
  • शांति को किन चुनौतियों का सामना करना पड़ा और सहायता कार्यक्रमों ने इन बाधाओं पर काबू पाने में उसकी कैसे सहायता की?
  • गहन साक्षात्कार: शांति, उसके माता-पिता, शिक्षकों और कार्यक्रम समन्वयकों के साथ उसके अनुभवों और कार्यक्रम के प्रभाव के बारे में जानकारी प्राप्त करने के लिए साक्षात्कार आयोजित करें।
  • फ़ील्ड अवलोकन: कार्यक्रम के कार्यान्वयन और उसके प्रभावों को समझने के लिए कक्षाओं, परामर्श सत्रों और सामुदायिक बातचीत का निरीक्षण करने के लिए सुंदरपुर का दौरा करें।
  • दस्तावेज़ विश्लेषण: शांति की प्रगति और परिवर्तन को मापने के लिए उसके अकादमिक रिकॉर्ड, उपस्थिति रिपोर्ट और प्रशंसापत्र की समीक्षा करें।
  • फोकस समूह चर्चाएँ: गाँव पर कार्यक्रम के व्यापक प्रभाव का आकलन करने के लिए अन्य लड़कियों और समुदाय के सदस्यों के साथ चर्चाएँ आयोजित करें।
  • एक उत्साही युवा लड़की शांति को सुंदरपुर में ग्रामीण जीवन की कठोर वास्तविकताओं का सामना करना पड़ा। शैक्षिक सशक्तिकरण कार्यक्रम की शुरुआत के साथ, उन्हें चुनौतियों के बीच आशा की एक किरण दिखी। समर्पित शिक्षकों और गुरुओं के समर्थन से, शांति अकादमिक रूप से आगे बढ़ी। इंटरैक्टिव शिक्षण विधियों और पाठ्येतर गतिविधियों के माध्यम से, उन्होंने विज्ञान के प्रति अपने जुनून को खोजा और डॉक्टर बनने का सपना देखा, एक ऐसा पेशा जो कभी उनके गांव में लड़कियों के लिए अप्राप्य माना जाता था।
  • अपने परिवार द्वारा गले लगाए जाने और अपने गुरुओं द्वारा प्रोत्साहित किए जाने पर, शांति सामाजिक दबावों के बावजूद डटी रही। केस स्टडी पद्धति ने शोधकर्ताओं को उसकी यात्रा की परतों को खोलने की अनुमति दी, जिससे न केवल उसकी शैक्षणिक उपलब्धियों बल्कि उसके बढ़ते आत्मविश्वास और दृढ़ संकल्प पर भी प्रकाश पड़ा।

निष्कर्ष: शांति की कहानी शिक्षा और सामुदायिक समर्थन की परिवर्तनकारी शक्ति का एक प्रमाण है। केस स्टडी पद्धति के माध्यम से, शोधकर्ताओं ने प्रतिकूलता से सशक्तिकरण तक का मार्ग उजागर किया, यह दिखाते हुए कि कैसे समर्पित प्रयास और अनुरूप शैक्षिक पहल लैंगिक बाधाओं को तोड़ सकते हैं, समुदायों का उत्थान कर सकते हैं और ग्रामीण भारत के दिल में आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित कर सकते हैं।

  • केस स्टडी पद्धति सामाजिक अनुसंधान के क्षेत्र में एक प्रकाशस्तंभ के रूप में खड़ी है, जो मानवीय अनुभवों की गहराई और विविधता को उजागर करती है। सिद्धांत और वास्तविक जीवन के अनुप्रयोग के बीच अंतर को पाटने की इसकी क्षमता इसे गहन अंतर्दृष्टि चाहने वाले शोधकर्ताओं के लिए एक अनिवार्य उपकरण बनाती है। जैसे-जैसे हम मानव व्यवहार की जटिलताओं से निपटते हैं, केस स्टडी पद्धति एक मार्गदर्शक बनी रहती है, जो एक समय में एक कहानी के साथ हमारी सामाजिक दुनिया की जटिल टेपेस्ट्री को उजागर करती है।
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  • Updated on  
  • मार्च 29, 2023

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किसी भी काम को शुरू करने से पहले गहरे रिसर्च की आवश्यकता होती है। बिना रिसर्च के अगर आप कोई भी काम करते हैं तो उससे पहले उसके बारे में थोड़ी बहुत रिसर्च कर लेना ज़रूरी होता है। यही बात बिजनेस के बारे में भी लागू होती है। अगर आप कोई बिजनेस शुरू करना चाहते हैं, तो उस बिजनेस को शुरू करने से पहले पूरी जानकारी लें, पूरी स्टडी करें, मार्केट में जाकर उसके बारे में सारी बारीकियाँ पता करें। उसके बाद उस बिजनेस को शुरू करने को लेकर कोई कदम उठाएँ। बिजनेस रिसर्च किसी भी बिजनेस को शुरू करने से जुड़ी एक बहुत ही अहम प्रक्रिया है। आज इस ब्लॉग business research in Hindi में हम आपको बिजनेस रिसर्च के मतलब से लेकर इसके महत्व और बाकी पहलुओं के बारे में विस्तार से बताएँगे। पूरी जानकारी प्राप्त करने के लिए business research in Hindi इस ब्लॉग को अंत तक पढ़ें। 

This Blog Includes:

बिजनेस रिसर्च क्या है, बिजनेस रिसर्च कैसे किया जाता है  , बिजनेस रिसर्च कितने प्रकार के होते हैं  , बिजनेस रिसर्च के उदाहरण  , बिजनेस रिसर्च की सीमाएं , बिजनेस रिसर्च के उद्देश्य , बिजनेस रिसर्च का महत्व , बिजनेस रिसर्च की विशेषताएँ .

बिजनेस से जुड़े लक्ष्यों की पूर्ति के लिए रिसर्च करना बिजनेस रिसर्च कहलाता है। बिजनेस रिसर्च के अंतर्गत बिजनेस के उद्देश्यों और अवसरों का पता लगाया जाता है। मार्केट रिसर्च एक प्रकार से बिक्री और डाटा का एकत्रित रूप होता है। दूसरे शब्दों में कहें तो बिजनेस रिसर्च मार्केट और ग्राहकों की पसंद के विषय में जानकारी इकट्ठा करना है। यह किसी भी बिजनेस को प्रारंभ करने से जुड़ी सबसे शुरुआती प्रक्रिया है, जो कि किसी भी व्यापार में बहुत ही अहम भूमिका निभाती है। 

किसी भी बिजनेस को शुरू करने से पहले उसके बारे में बेहतर तरीके से रिसर्च करना बहुत ज़रूरी है। जैसा कि आप ऊपर भी पढ़ चुके हैं कि यह किसी भी बिजनेस से जुड़ी सबसे अहम और शुरुआती प्रक्रिया है। नीचे बिजनेस रिसर्च के बारे में विस्तार से बताया गया है : 

  • प्रॉडक्ट के लिए मार्केट के मुताबिक रणनीति बनाना : आपको मार्केट के मुताबिक अपने प्रॉडक्ट के लिए स्ट्रेटेजी बनानी चाहिए। उदाहरण के लिए मनोवैज्ञानिकों के मुताबिक लाल रंग को देखकर इंसान के मन में कुछ खाने की इच्छा उत्पन्न होती है। अगर आप कोई खाने पीने से जुड़ा हुआ प्रॉडक्ट बाज़ार में लेकर आ रहे हैं तो आपको उसकी पैकेजिंग लाल रंग में करनी चाहिए। इस प्रकार की रणनीति मार्केट स्ट्रेटेजी के अंतर्गत आती है। 
  • टार्गेट कस्टमर ग्रुप को समझना : आप अगर कोई भी बिजनेस शुरू करने जा रहे हैं तो आपको पहले अपने प्रॉडक्ट से जुड़े बिजनेस के कस्टमर ग्रुप को टार्गेट करना होगा। मान लीजिए आप कोई पेन बनाने का बिजनेस शुरू करने वाले हैं। तो आप पहले यह जानें कौन लोग आपका प्रॉडक्ट खरीदेंगे। आपका प्रॉडक्ट पेन है तो जाहिर सी बात है कि आपका टार्गेट कस्टमर स्टूडेंट्स और टीचर्स ही होंगे। इस हिसाब से आपको बाज़ार में चल रहे स्टूडेंट्स और टीचर्स की पसंद से जुड़ी चीजों के बारे में रिसर्च करनी चाहिए और उसी हिसाब से अपने प्रॉडक्ट को डिजाइन करना चाहिए। 
  • प्रॉडक्ट को ऑनलाइन रखना है या ऑफलाइन : आजकल सबकुछ ऑनलाइन हो गया है। किताब से लेकर कपड़ों तक सबकुछ ऑनलाइन उपलब्ध है। लेकिन यह बात हर प्रॉडक्ट के हिसाब से लागू नहीं होती। मान लीजिए आपको चिप्स का बिजनेस शुरू करना है। अब चिप्स को अगर आप ऑनलाइन बेचना शुरू करेंगे तो यह ज्यादा फायदेमंद नहीं होगा। क्योंकि चिप्स को ज़्यादातर लोग ऑनलाइन न खरीदकर सीधे दुकान से खरीदना पसंद करते हैं। इन सब बातों के बारे में आप बिजनेस रिसर्च के द्वारा ही पता कर सकते हैं। 
  • लेटेस्ट ट्रेंड के बारे में पता करें : आपको अपने बिजनेस से जुड़े लेटेस्ट ट्रेंड्स के बारे में पता होना चाहिए। उदाहरण के लिए अगर आप कपड़ों का बिजनेस शुरू करना चाह रहें हैं तो आपको पहले लेटेस्ट फ़ैशन के बारे में रिसर्च करनी पड़ेगी और उसी हिसाब से अपने प्रॉडक्ट को डिजाइन करना होगा। 
  • प्रॉडक्ट लॉंच करने का समय : बिजनेस रिसर्च की मदद से आप अपने प्रॉडक्ट को लॉंच करने का सही समय चुन सकते हैं। मान लीजिए आप कोई टीवी बनाने का बिजनेस शुरू करना चाहते हैं। आपका प्रॉडक्ट बनकर तैयार है। अगर आप अपने टीवी को ऐसे समय में लॉंच करते हैं जब क्रिकेट का वर्ल्डकप शुरू होने वाला है तो गारंटी है कि आपका प्रॉडक्ट धड़ाधड़ बिकेगा। क्योंकि उस समय क्रिकेट के दीवाने लोग पूरी तरह से क्रिकेट का मज़ा लेने के लिए नए टीवी खरीदना शुरू करेंगे। आपका प्रॉडक्ट अगर कम कीमत पर ज्यादा फीचर्स प्रदान करेगा तो जाहिर सी बात है कस्टमर्स आपके टीवी को लेना पसंद करेंगे। इसके लिए आपको यह रिसर्च करनी पड़ेगी कि क्रिकेट वर्ल्ड कप कब शुरू होने वाला है और कब तक चलेगा। उसी हिसाब से आपको अपने टीवी को मार्केट में उतारना आपके लिए फायदेमंद साबित होगा। यह सब बिजनेस रिसर्च का ही हिस्सा है। 

बिजनेस रिसर्च के प्रकार ये हैं : 

  • प्राइमरी रिसर्च : इसके अंतर्गत आप किसी भी प्रॉडक्ट के बारे में आम आदमी की राय के बारे में पता करते हैं। इसमें पब्लिक पोल जैसे गतिविधियाँ शामिल होती हैं। 
  • सेकंडरी रिसर्च : इस प्रक्रिया में कोई थर्ड पार्टी आपके लिए डाटा इकट्ठा करके देती है। 
  • गुणात्मक रिसर्च : गुणात्मक रिसर्च प्राइमरी और सेकंडरी दोनों तरह के होते हैं। इससे जुड़ा कोई निश्चित नंबर नहीं पता किया जा सकता। यह पूरी तरह से एक प्रैक्टिकल प्रोसेस है जिसके बारे सही से अनुमान लगाना मुश्किल होता है। 
  • मात्रात्मक रिसर्च : ये प्राइमरी रिसर्च और सेकंडरी रिसर्च दोनों के ही समान होते हैं मगर इन्हें आसानी से अनुमानित किया जा सकता है। 
  • ब्रांडिंग रिसर्च : यह कंपनी को एक ब्रांड के रूप में स्थापित करने में मदद करता है। इसके द्वारा यह पता लगाया जाता है कि आपके ब्रांड को लोग कितना पसंद कर रहे हैं। 
  • कस्टमर रिसर्च : कस्टमर रिसर्च के अंतर्गत आपके प्रॉडक्ट से जुड़े टार्गेट कस्टमर्स के बदलते हुए टेस्ट को पहचानता है और उस हिसाब से प्रॉडक्ट में चेंजेज़ करके बेचने में मददगार साबित होता है। 
  • उत्पाद रिसर्च : इसके   तहत यह पता लगाय जाता है कि आने वाले समय में आपका प्रॉडक्ट बाज़ार में कितनी बिक्री करने वाला है। 
  • प्रतिस्पर्धा रिसर्च : इसके द्वारा यह जानने की कोशिश की जाती है कि आपके प्रॉडक्ट की तुलना में और कौनसे उत्पाद बाज़ार में उपलब्ध हैं और उनकी खूबियाँ और कमियाँ क्या क्या हैं। इस हिसाब से आपको अपने प्रॉडक्ट को तैयार करने में मदद मिलती है। 

बिजनेस रिसर्च के उदाहरण नीचे दिए जा रहे हैं : 

  • बिजनेस के बारे में रिपोर्ट तैयार करना : इसके अंतर्गत बिजनेस से जुड़े लाभ और हानि के मुताबिक अनुमानित डाटा तैयार किया जाता है। 
  • बजट का अनुमान लगाना : इसके अंतर्गत बाज़ार में बिकने वाले उसी तरह के प्रोडक्ट्स के आधार पर अपने प्रॉडक्ट के संबंध में होने वाले कुल खर्च का अनुमान लगाया जाता है। 
  • अवसरों और टारगेट्स का अनुमान लगाना : इस प्रक्रिया के अंतर्गत उत्पाद से सबंधित अवसरों और आने वाले समय में हासिल किए जाने वाले लक्ष्यों के संबंध में एक अनुमानित रिपोर्ट तैयार की जाती है। 

किसी भी चीज़ की अपनी कुछ सीमाएं होती हैं। यही बात बिजनेस रिसार्च के बारे में भी लागू होती है। इसकी भी अपनी कुछ सीमाएं हैं। जैसे आपको अपने प्रॉडक्ट से जुड़ी रिसर्च के लिए एक थर्ड पार्टी पर निर्भर रहना पड़ता है। आप सबकुछ खुद नहीं कर सकते। न चाहते हुए भी आपको थर्ड पार्टी की मदद लेनी ही पड़ती है। इसके बाद आपको उसकी रिसर्च पर ही निर्भर रहना पड़ता है। दूसरी बात यह है कि यह रिसर्च ज़्यादातर अनुमानित होती है। अनुमान हर बार सही साबित हो ऐसा कोई ज़रूरी नहीं। 

Business research in Hindi ब्लॉग में अब बारी है बिजनेस रिसर्च के उद्देश्यों के बारे में जानने की : 

  • लॉंच से पहले प्रॉडक्ट के लिए बाज़ार के रुख को पहचानना : बिजनेस रिसर्च का उद्देश्य किसी भी प्रॉडक्ट को लॉंच करने से पहले मार्केट में उससे जुड़ी सभी जरूरी बातों के बारे में जानकारी इकट्ठा करना होता है। इसकी मदद से आपको अपने प्रॉडक्ट को बाज़ार में उतारने में बहुत सहूलियत होती है। 
  • प्रॉडक्ट से जुड़े आइडिये को फाइनल करने में मदद : बिजनेस रिसर्च के बाद ही कोई उद्यमी अपना प्रॉडक्ट फाइनल करता है। बिजनेस रिसर्च के बाद ही उसे प्रॉडक्ट रेट और इससे जुड़ी अन्य महत्वपूर्ण बातों के बारे में पता चलता है। 
  • प्रॉडक्ट को इंवेस्टर्स के सामने पिच करने में आसानी : मार्केट रिसर्च के बाद ही कोई भी उद्यमी अपने उत्पाद को इंवेस्टर्स के सामने अच्छे से पिच कर पाता है ताकि वे उसके प्रोडक्ट में पैसा इन्वेस्ट कर सकें। 

अब तक आप इस ब्लॉग business research in Hindi में बिजनेस रिसर्च की सीमाओं और उद्देश्य के बारे में पढ़ चुके हैं। अब बिजनेस रिसर्च के कुछ महत्व भी जान लीजिए : 

  • दर्शकों के रुझान के बारे में बेहतर समझ विकसित करना : बिजनेस रिसर्च की मदद से आप अपने प्रॉडक्ट के प्रति दर्शकों के रुझान के बारे में जान सकते हैं। 
  • बाज़ार में मौजूद प्रतिस्पर्धी प्रोडक्ट्स के बारे में जानकारी प्राप्त हो जाना : आप बिजनेस रिसर्च के माध्यम से बाज़ार में अपने प्रॉडक्ट से मिलते जुलते प्रोडट्स की खूबियों और खामियों के बारे में आराम से जान सकते हैं। 
  • गुणवत्ता में सुधार : बिजनेस रिसर्च की मदद से आप अपने प्रोडक्ट में मार्केट की मांग के मुताबिक क्वालिटी में सुधार कर सकते हैं। 
  • संभावित खतरों की जानकारी प्रदान करना : बिजनेस रिसर्च की मदद से आप अपने प्रोडक्ट से संबन्धित खतरों के बारे में पहले से जान सकते हैं और बीमा कराकर भविष्य में होने वाले नुकसान से बच सकते हैं। 

अब अंत में business research in Hindi के अंतर्गत बिजनेस रिसर्च से जुड़ी कुछ विशेषताओं के बारे में भी जान लीजिए: 

  • इसके तहत प्राथमिक रूप से प्रोडक्ट के संबंध में बाज़ार का डाटा इकट्ठा किया जाता है। 
  • इसके तहत ही ग्राहक की पसंद के संबंध में प्राइमारी और सेकंडरी लेवल पर डाटा तैयार किया जाता है। 
  • इसका मुख्य उद्देश्य व्यापार संचालन में उद्यमी को मदद पहुंचाना होता है। 
  • हालांकि यह कभी भी पूर्णत: सही नहीं होता फिर भी किसी भी प्रोडक्ट को बाज़ार में उतारने में यह बहुत मदद प्रदान करता है। 

कुछ व्यापक लक्ष्य जो मार्केटिंग रिसर्च संगठनों को पूरा करने में मदद कर सकते हैं, उनमें शामिल हैं: महत्वपूर्ण व्यावसायिक निर्णय लेना, निवेश और फंडिंग हासिल करना, नए व्यावसायिक अवसरों का निर्धारण करना और यहां तक ​​कि व्यावसायिक विफलताओं से बचना।

मार्केटिंग रिसर्च, जिसे “विपणन अनुसंधान” के रूप में भी जाना जाता है, संभावित ग्राहकों के साथ सीधे किए गए शोध के माध्यम से एक नई सेवा या उत्पाद की व्यवहार्यता निर्धारित करने की प्रक्रिया है।

बिज़नेस रिसर्च के उद्देश्य प्रतिस्पर्धी शक्तियों (और कमजोरियों) को उजागर करना चाहते हैं, संभावित प्रभावित करने वालों की पहचान करना, ग्राहक जनसांख्यिकी को प्रकट करना, ब्रांड जागरूकता में सुधार करना और विपणन प्रभावशीलता को मापना कुछ ऐसे तरीके हैं जिनसे कंपनियां उपभोक्ता जुड़ाव को मजबूत करने के लिए गुणवत्ता अनुसंधान का उपयोग कर सकती हैं।

ऑनलाइन मार्केट रिसर्च एक प्रकार का मार्केट रिसर्च है जो ऑनलाइन उपलब्ध दो प्रकार के डेटा का लाभ उठाता है।  डेटा आपके पास है और डेटा दूसरों द्वारा प्रकाशित किया गया है । इस प्रकार की जानकारी एकत्र करने और उसका विश्लेषण करने से आपको अपने लक्षित दर्शकों के बारे में अधिक जानने और अपनी पेशकशों को सही आकार देने में मदद मिल सकती है।

उम्मीद है आपको यह ब्लॉग पढ़ने के बाद business research in Hindi इस बारे में बहुत सी जानकारियां प्राप्त हुई होगी। यदि आपको हमारा यह ब्लॉग पसंद आया हो तो आप  अपने दोस्तों और परिवार के साथ भी यह ब्लॉग जरूर शेयर करें। ऐसे ही अन्य रोचक, ज्ञानवर्धक और आकर्षक ब्लॉग पढ़ने के लिए Leverage Edu के साथ बने रहें।

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Leverage Edu स्टडी अब्रॉड प्लेटफार्म में बतौर एसोसिएट कंटेंट राइटर के तौर पर कार्यरत हैं। अंशुल को कंटेंट राइटिंग और अनुवाद के क्षेत्र में 7 वर्ष से अधिक का अनुभव है। वह पूर्व में भारत सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय के लिए ट्रांसलेशन ऑफिसर के पद पर कार्य कर चुके हैं। इसके अलावा उन्होंने Testbook और Edubridge जैसे एजुकेशनल संस्थानों के लिए फ्रीलांसर के तौर पर कंटेंट राइटिंग और अनुवाद कार्य भी किया है। उन्होंने डॉ भीमराव अम्बेडकर यूनिवर्सिटी, आगरा से हिंदी में एमए और केंद्रीय हिंदी संस्थान, नई दिल्ली से ट्रांसलेशन स्टडीज़ में पीजी डिप्लोमा किया है। Leverage Edu में काम करते हुए अंशुल ने UPSC और NEET जैसे एग्जाम अपडेट्स पर काम किया है। इसके अलावा उन्होंने विभिन्न कोर्सेज से सम्बंधित ब्लॉग्स भी लिखे हैं।

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